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________________ RASPARAGARHWARIES प्रभु दर्शन में लीनता २३-७-२०००, रविवार श्रा. कृष्णा-७ : वागड़ सात चौबीसी धर्मशाला सामुदायिक प्रवचन, विषय - मैत्री पूज्य आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी धर्म-कल्पद्रुमस्यैता: मूलं मैत्र्यादि भावनाः । यैर्न ज्ञाता न चाऽभ्यस्ताः स तेषामतिदुर्लभः ।। अनन्त गुणों के भण्डार अनन्त करुणा के सागर तीर्थंकर भगवन्तों ने जो मुक्ति-मार्ग बताया है, उसके द्वारा अनेक आत्मा मोक्ष में गई हैं । ७०० साधु, १४०० साध्वीजी, गौतम स्वामी के ५०००० शिष्य आदि अनेक मोक्ष में गये हैं । प्रभु की कृपा से ही निगोद से निकलकर हम यहां तक बराबर मध्य में आये हैं । अभी का मार्ग ही दुरुह है । अभी तक प्रभु की कृपा थी, उस प्रकार अब भी प्रभु की कृपा से ही मार्ग में आगे बढ़ सकेंगे । * 'ललित विस्तरा' पढ़ने से ज्ञात होगा कि तीर्थंकर की कितनी महिमा है ? यह पढ़ने से हृदय प्रभु को समर्पित बनेगा । आज आप देख रहे हैं कि अनेक पू. साधु-साध्वीजी भगवंत कहे कलापूर्णसूरि - ३000000sonamoon ३१)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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