SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महान् योग बने बिना नहीं रहेगा । इससे आपकी प्रत्येक प्रवृत्ति के केन्द्र में भगवान रहेंगे । जहां भगवान हों वहां कषाय कैसे ? वहां अकल्याण कैसा ? ___ 'ए जिन ध्याने क्रोधादिक जे आसपासथी अटके ।' - न्यायसागरजी बख्तर पहने हुए योद्धा को शस्त्र नहीं लगता, उस प्रकार प्रभुभक्ति के बख्तर वाले भक्त को मोह के शस्त्र नहीं लगते । 'विषय लगन की अग्नि बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा; भई मगनता तुम गुण रस की, कुण कंचन कुण दारा ? - उपा. यशोविजयजी म. * तीन में से प्रत्येक के पांच-पांच लक्षण यहां बताते हैं । (कुल १५ लक्षण होंगे ।) * बहुमान वाले के पांच लक्षण : (१) तत्कथाप्रीति (२) निन्दा-अश्रवण (३) निन्दक पर दया उन उन योग्य वाले व्यक्तियों की कथा सुनने पर प्रेम जगता है, बहुमान जगता है, यह इच्छा योग है । इच्छा तद्वत्कथा प्रीतिः । भगवान के प्रति प्रेम है, यह कब ज्ञात हो सकता है ? उनकी निन्दा होती हो तो सुनी न जा सके । निन्दक के प्रति भी द्वेष उत्पन्न न हो, परन्तु करुणा आयेगी - बिचारा इस प्रकार भगवान की आशातना करके कहां जायेगा ? (४) चित्त का विन्यास : चैत्यवन्दन आदि जो जो क्रिया चलती हो उस समय चित्त उसमें ही होता है । फोन पर बात करते हैं तब मन कैसा एकाग्र होता है ? (५) परा जिज्ञासा - प्रकृष्ट जिज्ञासा : * विधि-तत्पर के पांच लक्षण : (१) गुरु का विनय (२) सत्काल की अपेक्षा - जिस समय जो करना हो वह करने की अपेक्षा आवश्यक है। जैसे त्रिकाल-पूजा । प्रातः २६ 0nooooooooooooooooo
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy