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पू. दादाश्री जीतविजयजी म.सा.
२२-७-२०००, शनिवार श्रा. कृष्णा-६
( परम पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म.सा. की स्वर्गतिथि )
मोक्ष अर्थात् छुटकारा । संसार अर्थात् कारागार । उस कारागार में से छुड़वाने के लिए तीर्थंकर तीर्थ की स्थापना करते हैं । कारागार में से छुड़ाने वाले की अपेक्षा भी संसार के कारागार में से छुड़ाने वाला महान् उपकारी है । ऐसी बात समझ में आये तो तीर्थंकर भगवान के प्रति अनन्य भक्ति उत्पन्न हो ।
करूणता यह है कि हमें संसार जेल (कारागार) नहीं लगता, महल लगता है । हम स्वयं कैदी नहीं लगते । यदि जेल, जेल न लगे तो उसमें से छूटने का प्रयत्न कैसे हो ? भगवान हमें धीरेधीरे समझाते है आप कैदी हैं, कैद में हैं ।'
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इतना पहले समझ में आये, तत्पश्चात् ही कैदी कैद में से छूटने का प्रयत्न करता है । इस कैद में से छूटे हुए तो धन्य हैं ही छूटने के लिए प्रयत्न करने वाले भी धन्य हैं ।
आज ऐसे धन्य पुरुष की बात करनी है ।
आज पू. दादाश्री जीतविजयजी म. की ७७वी स्वर्गतिथि है ।
(कहे कलापूर्णसूरि- ३ @@@@@@@@@
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