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तीर्थमाल, शंखेश्वर, वि.सं. २०३८
११-९-२०००, सोमवार भादौं शुक्ला-१३ : सात चौबीसी धर्मशाला
परम पुण्योदय से हम व्यवहार से इस संघ के सदस्य बने हैं । यदि भाव से बन जायें तो काम हो जाये । ___ व्यवहार कारण है, निश्चय कार्य है ।
कारण दो हैं : उपादान, निमित्त । दोनों साथ मिलें तो ही कार्य-सिद्धि होती है। लोकोत्तर अथवा लौकिक कारणों की सिद्धि तब ही होती है। उसके बिना न तो कुम्हार ही घड़ा बना सकता है या महिला भी रोटियां नहीं बना सकती । कारण की सामग्री एकत्रित न हो तो कार्य-सिद्धि कदापि नहीं होती ।
अपनी आत्मा उपादान कारण है, मोक्ष कार्य है, परन्तु वह कार्य कब सम्पन्न होता है ?
आज तक इस तीर्थ के आलम्बन से अनन्त जीवों ने मोक्ष रूप कार्य सिद्ध किया है । जब तक मोक्ष रूपी कार्य सिद्ध न हो तब तक चुप होकर बैठना नहीं है, ऐसा निर्णय करें । मोक्ष भले ही कार्य हो, परन्तु कार्य के पीछे नहीं दौड़ा जाता । तृप्ति भले ही कार्य हो, परन्तु तृप्ति के पीछे नहीं दौड़ा जाता । भोजन अथवा पानी के पीछे दौड़ा जा सकता है। भोजन, पानी मिलने (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 500050 0055 ३२५)