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कलाप्रभविजयजी कहो तो कोई नहीं पहचानेगा, परन्तु 'भाई महाराज' बोलो तो बालक से लगा कर वृद्ध सब पहचानते हैं ।
इस समाज की गम्भीर स्थितियां हमने देखी हैं । ओसवाल समाज के समकक्ष बैठ सकें वैसी स्थिति सात चौबीसी समाज की आज बनी है, जो गुरु-भक्ति के मीठे फल हैं ।
इतने विशाल प्राङ्गणवाली यह धर्मशाला पालीताणा में एक ही है । ६५ गांव एक साथ आ जायें तो ठहरा सकें, ऐसी विशाल यह धर्मशाला अभी क्यों न बनें ?
खीमईबेन धर्मशाला में ३७५ ठाणे रहे थे, यहां २५० भी नहीं
खीमई धर्मशाला में पिछला आराधना भवन मात्र तीन महिनों में ५५ लाख के खर्च से निर्मित हुआ है । आधे घंटे में ही ५५ लाख के स्थान पर एक करोड़ रूपये हो गये थे ।
आधा घंटा समय लेकर धर्मशाला में जो कोई कमी है वह पूरी कर लें ।
दूसरी बार चातुर्मास होगा तब तो पूरी धर्मशाला की कायापलट हो गई होगी ।
अशुभ भावों को नष्ट करके उपशम-भाव, वैराग्यभाव, त्याग-भाव तथा भक्ति-भाव बढ़ाने में यह पुस्तक मेरी आत्मा के लिए टोनिक तुल्य है ।
- साध्वी जितमोहाश्री
यदि जन्म एवं जीवन को सार्थक करना हो तो 'कहे, कलापूर्णसूरि' पुस्तक पढ़नी अनिवार्य है। इसमें जीवन जीने की अनेक चाबियां हैं ।
- साध्वी हर्षरक्षिताश्री
(३२४ wwwmomoooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)