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________________ पू. भुवनभानुसूरिजी के साथ, सुरत, वि.सं. २०४८ १०-९-२०००, रविवार भादौं शुक्ला - १२ : खीमईबेन धर्मशाला ( १ ) आकालमेते परार्थव्यसिननः । * भगवान पुरुषोत्तम हैं । भगवान की श्रेष्ठता किस तरह है ? भगवान करुणा के सागर, गुणों के भण्डार हैं । यह तो हम जानते ही हैं । इससे दूसरी श्रेष्ठता कौन सी ? भगवान की करुणा-शक्ति कितनी ? इन्द्रभूति तो भगवान के साथ वाद करने के लिए आये थे, परन्तु भगवान के दर्शन से उनके 'अहं' का पर्वत टूट गया और उसमें उन्हें भगवान के दर्शन हुए । फिर तो वे ऐसे नम्र बने कि उनकी जोड़ कही न मिले । चण्डकौशिक जैसा हिंसक नाग भगवान के प्रभाव से शान्त हो गया । चण्डकौशिक ने भी भगवान को जलाने के लिए पहले ज्वाला ही फेंकी थी, परन्तु भगवान की करुणता तो देखो । उन्हों ने उसे भी शान्त कर दिया । भगवान के सिवाय ऐसा पुरुषार्थ करने का विचार भी कौन दे ? दूसरे जीव मेरे समान हैं। मुझे उनकी रक्षा करनी चाहिये । (कहे कलापूर्णसूरि - ३ ३०५
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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