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________________ लें ? अनेक सज्जनों ने सहायता की है । मधुर प्रवचनकार पूज्य आचार्यश्री का सदा हम पर वरद् वात्सल्यपूर्ण हाथ रहा है । उनके मधुर प्रवचन में चाबुक भी मधुर लगते हैं । * खीमईबेन धर्मशाला अर्थात् वागड़ के निवासियों का छोटा सा गांव कहलाता है। उसमें पूज्यश्री की निश्रा मिलने से यह तो बड़ा गांव हो गया । . मालशीभाई की उदारता, रायशीभाई की व्यवहार-कुशलता और जगशीभाई की भक्ति की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। मालशीभाई कल रुदन करते ही होंगे । सभा० : इस समय भी रुदन करते हैं । गुरुदेव ! उन्हें रोते नहीं छोडे । पूज्यश्री : हम आपको हंसायेंगे, रुलायेंगे नहीं । खेतशीभाई : आखिर दोनों समाज एक ही हैं । एक ही भगवान और एक ही गुरु के अनुयायी हम अलग कैसे हों ? हमारी कभी भी आवश्यकता हो तो हमें बतायें, हम सदा तत्पर हैं । छ: छ: रविवारों पर पूज्य आचार्यश्री की निश्रा में पालीताणा में प्रथम बार सामुदायिक प्रवचनों में १७ आचार्य भगवन्, लगभग एक हजार साध्वीजी भगवन्, हजारों आराधक एक साथ बैठे हों वैसा दृश्य प्रथम बार देखने को मिला । सामुदायिक साधर्मिक वात्सल्य जिसके दाता आधोई निवासी हरखचन्दभाई वाघजी ।। यह सब याद करके हृदय गद्गद् हो जाता है । पूज्यश्री के प्रभाव से आज तक भोजन कदापि घटा नहीं या दूसरीबार बनाना नहीं पड़ा । पिताश्री से भी अधिक पूज्यश्री ने जो वात्सल्य-धारा प्रवाहित की है, वह कदापि भूली नहीं जा सकेगी । __ कोई अविनय हुआ हो तो पुनः पुनः मिच्छामि दुक्कडं । पूज्य आचार्यश्री : खीमईबेन के चारों भाईयों ने जो भोग दिया है वह अवर्णनीय है। कहे कलापूर्णसूरि - ३00masoooomnamasoooo® ३०३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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