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अभी-अभी हो चुके महान आचार्यों के नाम गिनाऊं ? -
तीर्थों के उद्धारक पू. नेमिसूरिजी - दूर दूर के तीर्थों के उद्धारक पूज्य नीतिसूरिजी, संघ स्थविर पूज्य सिद्धिसूरिजी, आगमोद्धारक पूज्य सागरजी, श्रमण संस्था के उद्धारक पूज्य प्रेमसूरिजी, पूज्य रामचन्द्रसूरिजी, श्रावक संघ के उद्धारक पूज्य वल्लभसूरिजी आदि ।
सबने अपनी-अपनी तरहसे अत्यन्त ही लगन एवं रुचि से प्रयत्न किया है।
पूज्य पं. श्री भद्रंकरविजयजी, पूज्य पं. श्री अभयसागरजी, पूज्य आचार्यश्री विजय कलापूर्णसूरिजी जैसे साधक इस संघ में से ही मिले है।
पूज्य आचार्यश्री विजय राजतिलकसूरिजी ने वर्धमान तप की २८९ ओली की । इतिहास में ऐसा उदाहरण मिलता नहीं है ।
वागड़ समुदाय के एक साध्वीजी पुष्पचूलाश्रीजी ने तीसरी बार ओली की अवश्य थी, फिर भी इस संख्या को लांघ नहीं सके ।
इन महात्मा का अन्तिम से पूर्व का चातुर्मास यहीं हुआ था । उस समय अत्यन्त तपस्या हुई थी। इस समय तो अनेक आचार्य हैं अतः तपस्या बहुत अधिक होनी चाहिये ।।
दो वर्ष पूर्व गिरधरनगर - अहमदाबाद में पूज्य आचार्य श्री कालधर्म को प्राप्त हुए थे ।
उनका गृहस्थजीवन का नाम रतिलाल था । दीक्षा की कोई भावना नहीं थी ।
रतिलाल को अपने आप गुरुजी ने दीक्षा दी थी, यह कहा जा सकता है। वे दीक्षा अंगीकार करने के लिए नहीं आये थे। जोग के आयंबिल कठिनाई से किये थे, परन्तु परम गुरु प्रेमसूरिजी की परम कृपा से आयंबिल में बहुत ही आगे बढ़ें ।।
ऐसे रत्नों की खान यह श्री संघ है ।
ऐसे तपस्वी की स्वर्ग-तिथि आज ही आई । यह भी एक योगानुयोग घटना है ।
__ पूज्य रामचन्द्रसूरिजी के कालधर्म के बाद उनके बाद कौन ?' की चिन्ता में पड़े साधुओं को मैं ने कहा था कि 'राम' आज
[२६६nomoooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)