________________
लिए कोई प्रयत्न नहीं किया, परन्तु उनका ध्यान रखनेवाले ऊपर वाले बैठे हैं न ?
गुलाब को कहना नहीं पड़ता कि भौंरो ! तुम आना । तालाब को कहना नहीं पड़ता कि मछलियो ! तुम आना । योग्य व्यक्ति को योग्य पात्र, मिल ही जाता है ।
पूज्यश्री चाहे कहीं भी नहीं गये, परन्तु उनके संयम की सुगन्ध सर्वत्र फैली हुई थी।
मुझे यहां कैसे आना हुआ ? बताऊं क्या ?
दीक्षा लेने की भावना के बाद मैं ने अपने ससुर मिश्रीमलजी को बता दिया, क्योंकि माता-पिता आदि कोई गुरुजन थे नहीं ।
ससुर ने कहा, 'मेरा भी दीक्षित होने का ही विचार है ।' वागड़वाले पूज्य कनकसूरिजी से दीक्षा लेनी है ।
परन्तु मेरी इच्छा पूज्य रामचन्द्रसूरिजी के पास दीक्षा लेने की थी ।
राजनादगांव में स्थित पू. मुनिश्री रूपविजयजी के पास आते पूज्य रामचन्द्रसूरिजी के जैन प्रवचन पढ़कर मुझे वैराग्य हुआ था । गुजराती यद्यपि नहीं आता था तो भी भावार्थ समझ लेता था । उन्हें पढ़ कर संसार की असारता मन में जम गई । संसार बुरा है, ऐसा वर्णन नहीं किया जाये तो कोई इसकी निर्गुणता को नहीं समझेगा ।
दीक्षा का प्रवाह बढ़ा है, यह इन महापुरुषों का प्रभाव है । पूज्य सागरजी म., पूज्य रामचन्द्रसूरिजी आदि महापुरुषों का प्रभाव है।
___अतः मेरा विचार पूज्य रामचन्द्रसूरिजी के पास दीक्षा ग्रहण करने का था, परन्तु ससुरजी ने जब अपनी भावना व्यक्त की, तब मैं भी उससे सहमत हो गया ।
अब यह भी बता दूं कि उन्हें पूज्य कनकसूरिजी के पास दीक्षा लेने की भावना क्यों हुई ?
पूज्य लब्धिसूरिजी का चातुर्मास वि. संवत् १९९६ में फलोदी में था तब उस समय जिन्हों ने संघ निकलवाया था वे जसराज लुक्कड के पिताजी भोमराजजी ने उनकी निश्रा में जैसलमेर का संघ निकलवाया था ।
[२४४000000momoooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)