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* 'भग' के १४ अर्थ है, परन्तु यहां 'भग' के ६ अर्थ लेने हैं - ऐश्वर्य, रूप, यश, लक्ष्मी , धर्म और प्रयत्न - इन छ: को 'भग' कहा जाता है । जिनमें ये छ:ओं सर्वोत्कृष्ट रूप में हो वह भगवान कहलाता हैं । १. ऐश्वर्य : इन्द्र जैसों के द्वारा भगवान की भक्ति तथा अष्ट
महाप्रातिहार्यादि भगवान का ऐश्वर्य है । रूप : जगत् भर के तीनों काल के इन्द्र भी भगवान के अंगूठे के समान रूप भी नहीं बना सकते । शायद बना लें तो भगवान के सामने कोयले के समान प्रतीत होता है। भगवान का ऐसा रूप भी उपकार के लिए ही होता है। यह देखने के लिए सम्यग्दृष्टि जीव उतावल करते हैं । अरे ! उनकी मूर्ति देखकर भी भक्त पागल हो जाते हैं । 'अमीय भरी मूर्ति रची रे, उपमा न घटे कोय । शान्त सुधारस झीलती रे, निरखत तृप्ति न होय ॥'
- पूज्य आनंदघनजी संप्रति महाराजा के समय के बिम्ब देखो, आपका मन नाच उठेगा । भगवान की मूर्ति भी इतनी मनोहर हो तो भगवान कैसे होंगे ? ३. यश : संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसका यश भगवान
की तुलना कर सके । राग-द्वेष आदि अन्तरंग शत्रुओं को जीत कर भगवान ने यह यश प्राप्त किया है । यह यश भी क्षणिक नहीं है, परन्तु सदाकाल रहने वाला होता है ।
भगवान के पास राग-द्वेष आदि जीतने की उत्कृष्ट शक्ति होती है। इसीलिए वर्धमान 'महावीर' के रूप में पहचाने गये हैं। भगवान का यश भी लोगों के लिए आनन्द-दायक होता है । जीवन में कुछ न हो और यश फैलाने का प्रयत्न करें तो लोग दुत्कारते हैं - धत्, ऐसे मम्मण का नाम कहां लिया ?
भगवान का या गौतम स्वामी जैसे का नाम हम लेते हैं क्योंकि उनका जीवन साधना से समुज्ज्वल था । .
गौतम स्वामी का नाम तो आज भी मुनिगण गोचरी जाने से पहले लेते हैं - (कहे कलापूर्णसूरि - ३00ooooooooooooooooo® २३५)