SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "कोई पति-रंजन अति घणुं तप करे रे' उस प्रकार तप नहीं करना है, ईर्ष्या अथवा प्रतियोगी के रूप में भी तप नहीं करना. है। युवानी के जोश में हो जाये, परन्तु उसके बाद परिणाम अच्छा नहीं आता । यह बात इसलिए याद आई कि आज एक साध्वीजी पूछने के लिए आये कि ५१ हो चुके है, आगे करूं ? देह क्षीण एवं अशक्त देख कर आज्ञा देने का मन नहीं हुआ । हमें अनुभव है कि एक साध्वीजी ६८ उपवास करने गये तो आज भी उनका स्वास्थ्य खराब है। इस प्रकार तप नहीं किया जाता । __ 'तदेव हि तपः कार्य, दुर्थ्यानं यत्र नो भवेत् । येन योगा न हीयन्ते, क्षीयन्ते नेन्द्रियाणि च ॥' - ज्ञानसार यह बात अच्छी तरह समझ लें । शरीर अश्व है । इसे बाह्य तप का प्रशिक्षण देना है, परन्तु कुचलना नहीं है । शक्ति से अधिक करके कुचलना नहीं है। इसी लिए प्रत्येक स्थान पर 'यथाशक्ति' शब्द का प्रयोग किया जाता है । यहां भी लिखा है - 'यथाशक्त्यप्रमादिनः ।' * 'नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । वीरियं उवओगो य, एअं जीवस्स लक्खणं ॥' ये जीव के लक्षण हैं न ? या इस पाट के लक्षण हैं ? गाथा केवल रटने-कण्ठस्थ करने के लिए हैं कि जीवन में उतारने के लिए हैं ? देखो उपा. महाराज के शब्द : 'जिहां लगे आतमद्रव्यन, लक्षण नवि जाण्यु; तिहां लगे गुणठाणुं भलूं, किम आवे ताण्यु ?' उपालम्भ देने का मेरा स्वभाव नहीं है। यह तो महापुरुषों ने जो लिखा है वह कहता हूं । यह सब आपको इसलिए पढ़ाया है । सर्व प्रथम आप अपना स्वरूप तो पहचानें । गृहस्थों को २१४0noooooooooooooooooo
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy