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________________ KEHAROR.au Rega સંવરજી.હા.Jાપપસાથે &ાપણ - ૨ શ્રી સ્તર સરોવરજી મ.સા." કોપયુતવમલસેશ્વર જીમ.સા. #ana. AT કોર્તિસેન સુરકિવર જી મ.સા | શીવાદ જિ. ભાતરાંન્દ્રસ્ટીવરજી મ.સા. છે 249 PAार अब વિતરહેલ SAMSARDHARATANE Si80500RNWARINIVASISAIRSSIRRIO पू. यशोविजयसूरिजी के साथ, वि.सं. २०५६, पालिताना १५-८-२०००, मंगलवार सावन शुक्ला-१५ * भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, वस्त्रहीन को वस्त्र और आवास-हीन को आवास देने वाला उपकारी गिना जाता है, तो धर्म प्रदान करने वाले भगवान कितने उपकारी गिने जायेंगे ? उनके उपकार की कोई सीमा नहीं है । यदि इस धर्म का पालन करें तो यह अव्याबाध सुख की गारण्टी देता है । इस धर्म के प्रणेता भगवान का उपकार कितना है ? 'अपुव्वो कप्पपायवो' यह धर्म अपूर्व कल्पवृक्ष, अपूर्व चिन्तामणि है। दुर्गति में जाने वाले को बचाकर सद्गति में स्थापित करने वाले ऐसे धर्म के उद्गाता भगवान का उपकार कितना है ? उपकारों का यह ऋण कैसे चुकाया जा सकेगा ? जो कुछ करें वह भगवान के चरणों में समर्पित करें । मुनीम सेठ को सौंपे, सैनिक राजा को सौंपे, गुरु शिष्य को सौंपे; उस प्रकार भक्त सर्वस्व भगवान को सौंपे । तप, जप, स्वाध्याय आदि सब भगवान के चरणों में रखना है । 'गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणाऽस्मत्कृतं जपम् ।' - शक्रस्तव | २१२ TAGRAM Monitorica कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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