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________________ है । दर्शन से दृष्टि धन्य हो गई है । अभी पू. आचार्यश्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी ने मुझे कहा : 'खड़े हो जाओ, और वह दृश्य देखो तो सही ।' भगवानश्री कृष्ण का रथ वृन्दावन में आया और गोपियों आदि दौड़ी आई । रथ में से भगवान नहीं उतरे । केवल सारथी उतरा तो भी सब धन्य हो गये । प्रभु ! चाहे आप नहीं आये । भगवान के दर्शन करके आये भक्त के दर्शन से भी हम धन्य हुए हैं । हम भी पूज्यश्री को यही कहना चाहते हैं । इतनी बड़ी सभा में बोलने की इच्छा बहुत होती है, परन्तु उक्त लालच को रोक कर रखता हूं। पूज्य गुरु भगवंतो को मुझे एक ही बात करनी है - हे गुरु भगवन्तो ! हम गुरु की सेवा करने में कमजोर सिद्ध न हों या विलम्ब न हो जायें, ऐसे आशीर्वाद दें । प्रकाश दाढ़ी : आगामी रविवार को पूज्यश्री गिरि-विहार जायेंगे । गिरि-विहार में भोजन के लिए तीन में से केवल एक ही रूपया निश्चित होगा । घी-दूध भी डेरी के नहीं, परन्तु शुद्ध दिये जायेंगे । ___इन्द्रियों के सुख की तो कई बार अनुभूति हुई है, परन्तु इन्द्रियातीत सुख का कदापि आस्वादन नहीं हुआ । - साध्वी महाप्रज्ञाश्री प्रभु के प्रति भक्ति की मस्ति पुस्तक के प्रत्येक शब्द में उतरी है। - साध्वी अक्षयरत्नाश्री. (२०४ 00oooooooooooooooos कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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