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________________ मैं उनकी सेवा के योग्य बनूं, मैं उनके वचनों का पालन करने वाला बनूं और निरतिचार पालन करके उन्हें बतानेवाला बनूं । . - पंचसूत्र ऐसा करेंगे तो ही आराधक बनेंगे । * यहां कैसे आनन्द से सब महात्मा मिलते हैं ? केवल रविवार को ही नहीं, हम तो लगभग कहीं न कहीं नित्य मिल जाते हैं । हृदय का प्रेम भाव इस प्रकार संघ में बढ़े तो ही उन्नति होगी । बाकी संघ में कोई कमी नहीं है । शक्तियां संगठित बनें यही आवश्यक हैं । गुरु-भक्ति के सम्बन्ध में जो सुनो, उस पर अमल करें । आज भी ऐसे श्रावक हैं जो कहते हैं - 'गुरु वचन तहत्ति ।' कभी कुमारपाल वी. शाह को पूछे । गुप्तरूप से करोड़ो रूपयों का कार्य करने वाले गुरु-भक्त कितने हैं ? छिपे रत्न हमारे चतुर्विध संघ में हैं । इसीलिए रत्नों की खान-तुल्य संघ का आज भी जयजयकार हो रहा है। गुरु-भक्ति का साक्षात् प्रभाव यहां भी अनुभव किया जा सकता है । इसी भव में भगवान के दर्शन किये जा सकते हैं । पू. हरिभद्रसूरिजी ऐसी बात (गुरु-भक्ति प्रभावेन) कहां से लाये ? सिद्धान्तों के अक्षरों के बिना तो ऐसी बात होती नहीं । उन्हें 'पंचसूत्र' में से ये अक्षर मिले : गुरु-बहुमाणो मोक्खो । गुरु एवं भगवान एक ही हैं । गुरु को समर्पित होते हो, अतः व्यक्ति को नहीं, भगवान को ही समपित होते हों; क्योंकि गुरु भगवान के द्वारा ही स्थापित हैं । समापत्ति ध्यान के द्वारा आज भी भगवान के दर्शन हो सकते हैं । ऐसा व्यक्ति स्वयं भगवान बनता है अथवा भगवान के पास पहुंचता है। सभी साधु-साध्वी स्व-गुरु के प्रति आदर रखें और भक्ति में वृद्धि करें तो रुका हुआ आत्म-विकास तीव्र वेग से चलता (१९६ wwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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