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________________ कृतज्ञता अधिक होती है उस प्रकार गुण-प्राप्ति अधिक होती गुण-प्राप्ति का मूल कृतज्ञता है । उपकारी को नित्य स्मरण करें तो गुणों की वृद्धि होती है । पू. कलापूर्णसूरिंजी कहते हैं : 'जिनके पास अध्ययन किया है, उन सबको मैं नित्य याद करता हूं ।' आप कितनों को याद करते हैं ? आत्म-विकास हेतु योग्यता प्राप्त करने की आवश्यकता है। योग्यता बढ़ने के साथ योग्य वस्तुएं प्राप्त होती ही रहती है। कदाचित् व्यक्ति उपस्थित न हो तो दिव्यकृपा उतरती ही है । थोडी-बहुत सहायता भी जिन्हों ने की हो, उन्हें याद करके यदि नवकार गिनेंगे तो नवकार में भी शक्ति बढ़ी हुई प्रतीत होगी । पूज्य धुरन्धरविजयजी म. : मेरे परम उपकारी गुरुदेव पू.पं. भद्रंकरविजयजी म. की सेवा में रहने वाले पं. वज्रसेनविजयजी ने एक मजेदार बात कही । बात गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता की है । __ गिरिविहार में चतुर्विध संघ की अद्भुत भक्ति होती है जिसके प्रेरक गुरु थे । अपने गुरु की भावना साकार करने के लिए उन्हों ने यह कार्य उठाया । भविष्य में तीन रूपयों के स्थान पर भोजन में एक ही रूपया लिया जायेगा । यह है गुरु-भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण । अब सद्गुरु स्वरूप एवं स्वरूप-रमणता में लीन पूज्य कलापूर्णसूरिजी वक्तव्य देंगे । पूज्य आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी महाराज : (सबको बारह नवकार गिनने की पूज्यश्री की ओर से सूचना दी गई ।) * गत रविवार को गुरु-तत्त्व पर विचार किया गया । आज भी इस विषय में अनेक महात्मा इसका रहस्य बतायेंगे । ___पांचो परमेष्ठी गुरु हैं । इसीलिए ये पंच गुरुमंत्र भी कहलाते हैं । ये पांच परम मंगलरूप हैं । ये जग का मंगल करने के लिए बंधे हुए हैं। (१९४ 0mmommonsooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - ३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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