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है । तलहटी में खड़ा व्यक्ति शिखर से यात्रा प्रारम्भ नहीं कर
सकता ।
प्रातिभ ज्ञान में आत्मवीर्य की प्रधानता है । वह क्षपकश्रेणि के समय होता है । जिस प्रकार कोई व्यापारी अमुक समय पर एक भी ऋण दाता लेनदार को अपने पास आने नहीं देता । मुद्दत दी हो तो ऋण दाता मांगने के लिए आयेंगे ही । यदि वे लेनदार एक साथ मांगने के लिए आ जायें तो आज का व्यापारी दिवाला निकाल देता है न ?
पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : व्यापार किया प्रतीत होता है । पूज्य श्री : सब नाटक किये हैं, परन्तु ऐसा कदापि किया नहीं है । भूल से भी अन्याय नहीं किया । कोई भूल जाये तो सामने से याद कराया है ।
* बांधे हुए कर्म तो उदय में आते ही हैं । बांधते समय आप स्वतन्त्र हैं, भोगते समय आप परतन्त्र हैं । भोगते समय समता ही रखनी पड़ती है ।
आपको क्या ? मुझ पर भी प्राणघातक व्याधि आई है । उस समय भगवान के तत्त्वज्ञान ने ही मुझे दुर्ध्यान से बचाया है, अन्यथा उस समय क्रोध भी आ जाये कि कोई सेवा करता नहीं है आदि; परन्तु एक अंगुली की पीड़ा दूसरी अंगुली ले नहीं सकती तो अपनी पीड़ा दूसरे कैसे ले सकते हैं ?
यश-3 - अपयश, शाता - अशाता सब अशाश्वत हैं, चले जाने वाले हैं । विहार में अच्छा तथा बुरा दोनों मार्ग चले जाने वाले हैं, यही मानें न ? उस प्रकार यहां भी यह सब चला जाने वाला है, यह मानकर समता रखनी है ।
ऐसा करने से ही राग, द्वेष आदि लुटेरों को जीत सकेंगे । वे सर्व प्रथम भगवान के भक्तों पर आक्रमण करते हैं, क्योंकि उन्हें क्रोध है भगवान ने हमारा अपमान किया है । अब उनके भक्तों को नहीं छोड़ेंगे । अतः राग-द्वेष आदि भक्तों पर आक्रमण करते हैं, परन्तु भक्त भी कहां पीछे रहने वाले हैं ?
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उन्हें विश्वास है कि हमारे मन की गुफा में सिंह के समान
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कहे कलापूर्णसूरि