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________________ जिस रीतिसे जाना हुआ हो उस रीति से जीना यही ज्ञान की तीक्ष्णता है, वही चारित्र है । ____ यहां चैत्यवन्दन के विषय में आप सीखते हैं । सीखने के पश्चात् चैत्यवन्दन तदनुसार ही करो तो वह ज्ञान तीक्ष्ण बन जाता * अशुभ विकल्प में पाप का आश्रव । शुभ विकल्प में पुण्य का आश्रव । निर्विकल्पदशा में सम्पूर्ण संवर । (६) उक्त क्रिया : जिस रीति से मुद्रा आदि के लिए लिखा, उस रीति से शक्ति के अनुसार करना 'उक्त क्रिया' है। मैं आजकल बांया पांव ऊंचा नहीं कर सकता, क्योंकि उतनी शक्ति नहीं है । इसीलिए लिखा है - 'यथा शक्तिः ' ।। आहार के ज्ञान मात्र से भूख नहीं मिटती । दवाई की जानकारी मात्र से आरोग्य नहीं मिलता । चैत्यवन्दन की जानकारी मात्र से सफलता नहीं मिलती । दवाई न लेकर आप रोग के लिए शिकायत नहीं कर सकते । 'उक्त क्रिया' न करके आप शिकायत नहीं कर सकते कि चैत्यवन्दन में आनन्द नहीं आता । यदि पूर्ण फल चाहिये तो जाना हुआ अमल में लेना ही पड़ता है। यहां कथनानुसार आप चैत्यवन्दन करेंगे तो इसी जन्म में आप निहाल हो जाओगे । यहां ही आनन्द का अनुभव होगा । * 'लोगस्स' अर्थात क्या ? स्वयं गणधरों के द्वारा २४ भगवानों की की गई स्तुति । गणधरों के गृहस्थ-जीवन की स्थिति हम जानते हैं। भगवान मिलने के पश्चात् की स्थिति भी हम जानते हैं । वे तो यही मानते हैं कि 'हम सर्वथा लोहा थे । भगवान ने हमें स्वर्ण बनाया ।' वे भगवान को कैसे भूल सकते हैं ? वे स्तुति के द्वारा हमें सिखाते हैं कि भगवान के द्वारा ही आरोग्य, बोधि, समाधि आदि मिलेगी । भगवान नहीं मिले होते तो कर्म के इस रोग में से तनिक भी मुक्त नहीं बन सके होते । कहे कलापूर्णसूरि - ३ wwwwwwwwwwwwwwwwwww १२५)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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