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________________ है ? यहां प्रत्यक्ष भगवान का उपकार है, उसे तो स्वीकार करें । आप भगवान के शासन में न हो तो आपको कौन पूछे ? * आत्मा निमित्तवासी है। जिसके पास रहेगी वैसी बनेगी । यदि हमारा जन्म कसाई आदि के घर हुआ होता तो? कैसे संस्कार आते ? मारने-काटने के दृश्य हमें कभी कभी देखने को मिलते हैं तो भी क्षुब्ध कर देते हैं । (अहमदाबाद में स्थंडिल के लिए जाते समय मुर्गे कटते हुए देखने को मिलते । बचपन में हैदराबाद में खुले आम लटकते प्राणियों के शव देखने को मिलते, परन्तु मैं वह मार्ग ही छोड़ देता ।) तो ये दृश्य जिन्हें नित्य देखने को मिलते हों, वे धीरे-धीरे ढीठ हो जाते हैं। यह है संगति का प्रभाव । * आप इतना निश्चय करें कि यह जन्म सब व्यर्थ नहीं जाने देना है । भले कम अध्ययन हो, परन्तु अध्ययन किया हुआ भावित बना हुआ होगा तो आत्म-कल्याण होकर ही रहेगा । ज्ञान दूसरे का काम में आ जायेगा परन्तु भावितता आपकी ही आवश्यक होगी, श्रद्धा आपकी ही आवश्यक होगी । * बोध-परिणति : ज्ञान परिणति में आने के पश्चात् स्थिरता चाहिये । अभिमान ज्ञान को स्थिर होने नहीं देता । इसीलिए सर्वप्रथम ज्ञान के अनुत्सेक की बात कही । ज्ञान बढ़ने के साथ अज्ञान का भान होता रहना चाहिये । ज्यों ज्यों अध्ययन करते जायें, त्यों त्यों अपना अज्ञान दृष्टिगोचर होता जाये तो अभिमान नहीं आता । * मुझे अभी एक स्वप्न आया था कि चारों ओर हरियाली है, चारों ओर निगोद है। कहां पांव रखे? जहां निगोद नहीं थी, वहां मैंने पाव रखा । जयणा एवं करुणा भावित होने पर ही ऐसे स्वप्न आ सकते हैं । स्वप्न आपके भीतर की परिणति का सूचक है । आजकल हैजे (कोलेरा) के वायरस चलते हैं । किसी को भी उल्टी-दस्तें होने लगती हैं तब तुरन्त ही होस्पिटल में प्रविष्ट होकर बोटल लेना प्रारम्भ करते हैं, गोलियां लेते हैं' उस प्रकार आत्मा थोड़ी भी भूल करे तो तुरन्त सचेत हो कर उसकी प्रतिक्रिया करनी चाहिये । (कहे कलापूर्णसूरि - ३ wwwoooooooooooooooo १२३)
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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