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जीवों की वक्रता, जड़ता अधिक होती है त्यों अनुशासन कठोर बनता जाता है । (४) बोध परिणति :
* बोध सच्चा वही कहलाता है जो परिणाम प्राप्त हो । परिणाम में कुछ नहीं हो वह ज्ञान किस काम का ?
व्यावहारिक ज्ञान भी परिणाम प्राप्त न करें तो क्या सफल होगा ?
ज्ञान भण्डार में से चौपडे मंगवाये । यहां सुनते समय खोले, फिर बंध कर दिये । वहां जाकर खोले कौन ?
ऐसा ज्ञान कल्याणकारी बनेगा, ऐसा प्रतीत होता है ? क्या ऐसा ज्ञान मोह के पिंजरे में से मुक्ति दिला सकेगा ? क्या ऐसा ज्ञान ग्रन्थियों में से मुक्ति दिला पायेगा ?
चौदह ग्रन्थियां हैं । इन ग्रन्थियों से मुक्त हो वही निर्ग्रन्थ है। चौदह ग्रन्थियां सुन लो : नौ नोकषाय + ४ कषाय + मिथ्यात्व = ये चौदह ग्रन्थियां हैं ।
सम्पूर्ण भव-चक्र में मोहनीय का उपशम पांच बार ही हो सकता है । क्षयोपशम असंख्य बार होता है । क्षय एक ही बार होता है । क्षय हो गया अर्थात् क्षायिक सम्यक्त्व मिल गया । क्षायिक सम्यक्त्व मिलने के पश्चात् जाता ही नहीं है ।
___ मोह का जोर घटने के पश्चात् ही बोध परिणाम पाता है । फिर वहां कुतर्क नहीं होते । ऐसा व्यक्ति जहां तहां जाकर अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं करता । रत्नों को तो ढक कर रखे जाते हैं, प्रदर्शन नहीं किया जाता ।।
कोई बात चलती हो, हम कुछ जानते हों और बिना पूछे तुरन्त ही बोल जाते हों तो समझें कि अपना ज्ञान प्रदर्शक है ।
सच्चा ज्ञान मार्गानुसारी होता है ।
जो उन्मार्ग पर ले जाये वह उल्टा ज्ञान है। मार्गानुसारी ज्ञान भले थोडा हो, परन्तु उल्टा तो नहीं ही होता । कभी कुछ बोला जाये अथवा गैर समझ आ जाये, परन्तु वह हठाग्रह में परिणमित हो वैसा न हो । दवा से मिटने वाले दर्द जैसा यह अज्ञान होता
(११८00wwwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ३)