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* कलिकाल में दो ही भगवान हैं । जिनागम = बोलते भगवान । जिनमूर्ति = मौन भगवान ।
आगमों के प्रति जितना आदर बढ़ेगा, उस प्रमाण में भगवान मिलेंगे ।
जिन आगमों की सुरक्षा के लिए हमारे पूर्वाचार्यों ने प्राण देने के लिए भी तत्परता दिखाई उन्हें हम कितना धन्यवाद दें ?
जैसलमेर में ताड़पत्रियां क्यों एकत्रित की गई हैं ? क्योंकि किसी का वहां शीघ्र आक्रमण न हो ।
इस प्रकार आगमों की सुरक्षा के लिए पूज्य सागरजी ने इस आगम मन्दिर का निर्माण कराया ।
अपने जीवन को आगममय बनाकर जीयें यही पूज्य सागरजी महाराज को सच्ची श्रद्धांजलि दी कहलायेगी ।
उन महापुरुषों के सम्बन्ध में जितना कहें उतना कम हैं ।
उन्हों ने कपडवंज, पाटन आदि स्थानों पर दो-चार बार आगम वाचनाओं का आयोजन किया था, जिनमें हमारे पूज्य कनकसूरिजी ने भी लाभ लिया था ।
आगमों में भगवान हैं यह समझा जाये तो स्वाध्याय करते समय भी भगवान याद आयें ।
भगवान अलग नहीं है, परन्तु भक्त की भूल के कारण भगवान अलग लगते हैं ।
यदि हम आगमों का पाठ करेंगे तो निश्चित रूप से पूज्य सागरजी की आत्मा प्रसन्न होगी ।
* पूज्यपं.भंद्रकरविजयजी म.के प्रशिष्य धुरन्धरविजयजी म. : 'जीवंता जग जस नहीं, जस विण का जीवंत ?
जे जस लेई आतमा, रवि पहेला उगंत ।'
- श्रीपाल रास, पुतली के मुंह से, उपा० यशोविजयजी जीते जी यश नहीं, उसका कोई मूल्य नहीं, जिसका यश होता है उसका नाम सूर्योदय से पूर्व गाया जाता है ।
पूज्य सागरजी महाराज ने वृद्धों को समझा-समझा कर हस्तलिखित प्रतों में सुरक्षित आगमों को बाहर निकाले । (१०४0000000aoooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)