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शास्त्रे पुरस्कृते तस्माद० पं. वीरविजयजी म. कहते हैं : 'जिनवर जिनागम एक रूपे, सेवंता न पडो भव-कूपे ।' यह पंक्ति तो सबको याद है न ?
यह सब आप मात्र सुनते हैं या याद रखकर भीतर उतारते हैं ? दुकान पर आकर केवल माल देख कर जानेवाले ग्राहक क्या आपको पसन्द आते हैं ? __अन्य कुछ नहीं तो श्रद्धा तो बढती है न ? श्रद्धा बढ़ जाये तो भी प्रयास सफल है ।
* इस 'ललित विस्तरा' में अद्भुत भाव भरे हुए हैं । दिन में सात बार 'नमुत्थुणं०' बोलते ही हैं । यह पढ़ेंगे तो बोलते समय अहोभाव बहुत ही बढ़ेगा ।
इस नमुत्थूणं में नौ सम्पदाएं हैं । सम्पदाओं का अर्थ मात्र विश्राम स्थान नहीं है, परन्तु भगवान की परोपकार आदि सम्पदाओं को बतानेवाले भी हैं । __ चाहे जिसकी स्तुति नहीं की जाती । दोषी-पापी की स्तुति करोगे तो उनके दोषों की पापों की अनुमोदना हो जायेगी । जगत् में सर्वोत्कृष्ट गुणवान् एक मात्र भगवान है । उनकी यहां स्तुति है।
स्तुति करने वाले गणधर जानते हैं - हम तो दोषों के ढेर से युक्त थे । हमारे दोषों को दूर करके गुण प्रकट करने वाले भगवान हैं । उन भगवान का उपकार कैसे भूला जाये ? 'प्रभु उपकार गुणे भर्या, मन अवगुण एक न माय रे ।'
- उपा. यशोविजयजी म. भगवान ने समस्त गुणों के संग्रह एवं दोषों का निरसन किया
'गुण सघला अंगी कर्या, दूर कर्या सवि दोष' हमें उस मार्ग पर चलना है । दोष दूर करते जायें तो गुण स्वयमेव प्रकट हो जायेंगे ।
क्रोध दूर करो तो क्षमा हाजिर !
___ मान दूर करो तो नम्रता हाजिर ! (कहे कलापूर्णसूरि - ३ BBWww am a DOG G6 ७९)