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________________ देते समय रोगी की मृत्यु हो गई थी । अनुभवरहित डाक्टर समाज को जितनी हानि पहुंचाता है, उसकी अपेक्षा योग्यता रहित गुरु अनेक गुनी हानि करता है। "जिम जिम बहुश्रुत बहुजन सम्मत, बहुशिष्ये परिवरियो । तिम तिम जिनशासननो वैरी, जो नवि निश्चय धरियो ॥" पूज्य यशोविजयजी की यह टिप्पणी कितनी वेधक है ? हम भी उसमें आ गये । * जो सैनिक स्वरक्षा नहीं कर सकता वह देश-रक्षा कैसे कर सकेगा ? यदि ऐसा सैनिक सेनापति बन जाये तो देश के लिए रोने का अवसर आयेगा । शिष्य बने विना गुरु बने हुए व्यक्ति शासन के लिए ऐसे ही हानिकारक बन जाते हैं । * आप चाहे जितना न्याय, व्याकरण आदि का अध्ययन करो, परन्तु आचार्य आदि दसों की वैयावच्च में उपेक्षा करो तो उस अध्ययन का कोई अर्थ नहीं है । विद्वान एवं वक्ता बनने के बाद भी वैयावच्च को नहीं भूलना है। * हमारे अग्रजों ने अपने समुदाय की कैसी छाप खड़ी की है, वह तो देखो । आज ही राजकोट से विनती आई है - 'हमें आपके ही समुदाय की साध्विजियों की आवश्यकता है।" कौन तैयार होगा ? हम 'भचाऊ' में स्थिरता के लिए आये थे, लेकिन पूज्यश्री की इच्छा जानकर गांधीधाम चले गये । मैं किसी को आदेश नहीं देता । मुझे भी "इच्छाकार" समाचारी संभालनी पड़ती है । मुझे आप के हृदय में इच्छा उत्पन्न करानी होती है, पुलिस की तरह आज्ञा नहीं देनी होती । पूज्य कनकसूरिजी का यह समय नहीं रहा । उनका कालधर्म हुए ३७ वर्ष हो गये । प्रति दस वर्ष में समय बदलता जाता है । अत्यन्त ही तीव्र गति से सब बदल रहा है । इतनी आयु में भी पू. कनकसूरिजी स्वयं तीन पाठ देते थे, फिर भी उनकी इच्छा का सम्मान करके मैं गांधीधाम गया । आखिर आशीर्वाद काम आता है । * जिनके पास दीक्षा अंगीकार की, जिन्हें गुरु के रूप (६०8wooooommonommmmon कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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