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________________ 22502 जयपुर, वि.सं. २०४१ १८-३-२०००, शनिवार फाल्गुन शुक्ला-१३ : पानवा * गुण चाहे अरूपी हो, परन्तु गुणी रूपी है । धर्म चाहे अरूपी हो, परन्तु धर्मी रूपी है । यदि आप गुण या धर्म के दर्शन करना चाहो तो आपको गुणवान या धर्मात्मा के दर्शन करने पड़ेंगे । गुणवान व्यक्ति का सत्कार किये बिना आप गुणों का सत्कार नहीं कर सकेंगे । * करने की अपेक्षा कराने की शक्ति अधिक होती है। इसकी अपेक्षा भी अनुमोदना की शक्ति अधिक होती है । करनेकराने की सीमा है, लेकिन अनुमोदना की कोई सीमा नहीं है। इसी कारण से अनुमोदना कराया गया धर्म अनन्तगुना हो जाता है और वह सानुबन्ध बनकर भव-भव का साथी बन जाता है। * एक गुण ऐसा बनायें कि जो सानुबन्ध बने, भव-भव तक साथ चले । * गत वर्ष वलसाड में चैत्रर महिने की ओली कराई गई थी, तब एक अजैन महात्मा ने कहा था - 'भागवत् में ऋषभदेव का वर्णन आता है; वेदों में आदिनाथ आदि का वर्णन आता है । (कहे कलापूर्णसूरि - २006owwwwwwwwwww ५३)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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