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________________ सम्पूर्ण विश्व वश में कर सकते हैं । विनय में ध्यान एवं समाधि के बीज पड़े हुए हैं । बड़ों का ही नहीं, छोटों का भी विनय करना है। आप बड़ों को 'मत्थएण वंदामि' करते हैं तो वे भी आपको ‘मत्थएण वंदामि' कहते ही हैं न ? यह छोटों का विनय है । 'मत्थएण वंदामि' कहते ही कर्मों का विनयन हुआ समझें । 'इच्छकार समाचारी' बड़ों को छोटों के प्रति कैसे व्यवहार करना यह सिखाता है । * उत्तम संयोग प्राप्त होने पर विनय पर सम्पूर्ण संकलन तैयार करना है। * मुझे कुछ भी मिला हो तो वह विनय के कारण ही मिला है। To Live (जीवन) से To Love (प्रेम) तक जीवन किस लिए ? जीने के लिए । जीना किस लिए ? कुछ करने के लिए । कुछ करना किस लिए ? सत्कर्म करने के लिए । सत्कर्म किस लिए ? जीवों के साथ प्रेम करने के लिए । जीवों के प्रति प्रेम क्यों ? भगवान के साथ प्रेम करने के लिए। Live एवं Love में अन्तर कितना ? आई (I) एवं शून्य (O) का ही केवल अन्तर है । I अहं का, स्वार्थ का प्रतीक है । 0 शून्य का, अहं-रहितता का प्रतीक है । अतः विश्व का वास्तविक सत्य यही है कि I-आई (अहं) को 0-ओ (शून्य) में परिवर्तित कर दें । स्वार्थी मिट कर प्रभु-प्रेमी बनें । ३८gooooooooooooooooom कहे
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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