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अभिप्राय
कहे कलापूर्णसूरि (जिज्ञासुओं के द्वारा अप्रतिम सराही गई पुस्तक) * सम्पादक - पू. पंन्यासजीश्री मुक्तिचन्द्रविजयजी गणिवर
पू. पंन्यासजीश्री मुनिचन्द्रविजयजी गणिवर प्रकाशक - श्री शान्ति जिन आराधक मण्डल, मनफरा
(तालुका भचाऊ) जिल्ला कच्छ, पिन : ३७० १४० । * डेमी साइज - पृष्ठ ५०९, मूल्य रु. १५०/
वांकी तीर्थ के प्राङ्गण में पू. आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी महाराज ने चतुर्विध संघ के समक्ष जो 'वाचनाएं' प्रस्तुत की, उन वाचनाओं का प्रतिदिन का संकलन प्रेरक वचनांशों के मुद्रण पूर्वक प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया है। संकलन, संयोजन अत्यन्त ही सुन्दर हुआ है । मुख्यतः प्रस्तुत ग्रन्थ में भक्ति-रस की लहरें हिलोरे ले रही है। साथ ही साथ अन्य अनेक तत्त्वों का भी ग्रन्थ में विवेचन किया गया है।
मुद्रण 'गेट अप' अत्यन्त ही मनोहर एवं मनमोहक है। प्रत्येक प्रकरण के प्रारम्भ में वाचना-दाता पू. आचार्यदेवश्री की विविध लाक्षणिक मुख-मुद्राओं का प्रतिकृति-दर्शन पाठकों को भक्ति-भाव से सराबोर करने में समर्थ है ।
पू.पं.श्री कलाप्रभविजयजी गणिवर्य को आचार्य पद, पू. मुनिराजश्री कल्पतरुविजयजी को पंन्यास पद, पू. मुनिराजश्री पूर्णचन्द्रविजयजी म. एवं पू. मुनिचन्द्रविजयजी म. को गणि पद प्रदान के अवसर पर प्रस्तुत किया जानेवाला यह प्रकाशन सचमुच साधकों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा, क्योंकि अनुप्रेक्षा एवं चिन्तन के महासागर में डुबकी लगाने के पश्चात् प्राप्त अनेक रत्न इस प्रकाशन के प्रत्येक पृष्ठ पर चमकते प्रतीत हो रहे हैं। सम्पादकों एवं संकलनकर्ताओं का परिश्रम सचमुच सराहनीय रहा है । साथ ही साथ मुद्रक का उद्यम भी कम नहीं रहा ।
___'कल्याण' पर्युषणाङ्क, वर्ष ५७, अंक ५
अगस्त २०००, सावन-२०५६
(कहे कलापूर्णसूरि - २000000000000000000 ५४७)