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अखण्ड ज्योत उबलक दूध (जीव) साधु का समागम पाकर शान्त हो गया, तब अवसर पाकर साधु ने उसमें समकित का 'मेलवण' डाला और दही बनाया ।
उपाध्याय भगवन्त ने मंथन (अनुप्रेक्षा) कर के मक्खन निकाला।
आचार्य भगवन्त ने उसे तप की अग्नि से तपाकर घी बनाया ।
घी बोला, 'अब मुझे भगवान के पास जाना है। कहां हैं भगवान ?'
'भगवान तो मोक्ष में गये । हां, मन्दिर में स्थापना के रूप में वे अवश्य प्रतिष्ठित हैं ।'
'तो मैं वहां जाऊंगा ।' __ भगवान के पास रही अखण्ड ज्योति के कोडिये में रहकर घी जल-जलकर ऊपर (सिद्धशिला पर) जाने लगा ।
भगवान के बिना इस संसार में कहीं भी वह रह नहीं सकता था।
सहनशक्ति का रहस्य 'आप में इतनी अधिक सहनशक्ति कहां से आई ?' 'ऊपर, नीचे और बीच में देखने से ।' 'मतलब ?'
'ऊपर देखता हूं तो मोक्ष याद आता है । नीचे देखता हूं तो धरती दिखाई देती है। और मैं सोचता हूं - मुझे कितने फूट जमीन चाहिये ? व्यर्थ झगड़े किस बात के ? और आसपास देखता
हूं तो वे लोग दिखाई देते हैं, जो मुझसे भी अधिक कष्ट सहन ... कर रहे हैं । यह हैं मेरी सहनशक्ति का रहस्य ।' 8
(५४६ooooooooooooooooooon कहे कलापूर्णसूरि-२)