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यह नाम एक न हों तो घडी बोलते ही यह याद आयेगी ?
पत्र आपने लिखा, परन्तु एड्रेस पर नाम लिखना भूल गये तो डाक पहुंच जायेगी ? गाडी में बैठे, परन्तु गांव का नाम भूल गये तो क्या आप उस गांव में पहुंच सकोगे ? व्यवहार में भी नाम कितना उपयोगी है ?
भाव तीर्थंकर के रूप में भगवान महावीर ने ३० वर्ष तक उपकार किया परन्तु नाम एवं मूर्ति के रूप में कितने वर्षों तक उपकार करेंगे ?
तीर्थंकर कब तक रहेंगे ? उनके आयुष्य की मर्यादा होती है, परन्तु उनका नाम और मूर्ति सदा रहेंगे ।
तीर्थंकर भले बदलें, नाम भी भले ही बदलें परन्तु याद रहे कि नाम दो प्रकार के हैं - सामान्य एवं विशेष । विशेष नाम भले ही बदल जायें, सामान्य नाम कहां जायेंगे ? _ 'ऋषभदेव' विशेष नाम है । 'अरिहंत' सामान्य नाम है । अब प्रस्तुत पर आते है ।
* ग्रन्थकार कहते हैं - जीवन में विनय आ गया तो सब आ गया । विनय गया तो सब गया । विनय नहीं देखने से ही स्थूलभद्रजी को भद्रबाहु स्वामीजी ने पाठ देने का इनकार कर दिया था ।
विनय जाने पर अविनय आयेगा । विनय यदि समस्त गुणों का प्रवेश-द्वार है तो अविनय समस्त दोषों का प्रवेशद्वार है । इसीलिए इस ग्रन्थ में प्रथम द्वार 'विनय' है । विनय किसका करना चाहिये ? आचार्य का करना चाहिये । इसी कारण से आचार्य के गुणों का दूसरा अधिकार आया ।
कौन सा शिष्य आचार्य का विनय करता है ? अतः तीसरा अधिकार शिष्य के गुणों का कहा है ।
विनय से आदर बढ़ता है, चित्त में निर्मलता बढ़ती है, जिससे दूसरों के गुण हमें दिखाई देते हैं ।
आचार्य के गुण इसलिए बताये हैं कि शिष्य को पता लगे मुझे कैसे गुरु बनाने हैं ?
शिष्य के गुण इसलिए बताये हैं कि उसे कैसा जीवन जीना (५४२wooooooooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - २)