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समय नष्ट नहीं होगा । समय का सदुपयोग होगा । समय तो वैसे ही नष्ट हो रहा है ।
जाप की संख्या बढ़ने पर उसकी शक्ति भी बढ़ती है, अपनी चेतना-शक्ति बढ़ती है, आन्तर ऊर्जा बढ़ती है।
कलिकाल सर्वज्ञ,समर्थ साहित्यकारश्री हेमचन्द्रसूरिजी ने उनकी माता साध्वी पाहिनी के अन्त समय में एक करोड़ नवकार के जाप का पुन्यदान दिया था । उनको समय मिल जाये, परन्तु आपको समय नहीं मिलता ।
दादा की निश्रा में एकत्रित हुए हैं तो इतना अवश्य करें ।
सभी महात्मा इतना जाप करें तो अभ्यन्तर बल कितना. बढ़ जाये ?
* समस्त आगम, वेद, पुराण, त्रिपिटक आदि समस्त शास्त्रों का सार एक 'ज्ञानसार' में समाविष्ट है । अधिक न हो सके तो एक 'ज्ञानसार' का अध्ययन तो कर ही लें - सूत्र, अर्थ एवं तदुभय से ।
दूसरों को पढ़ाने के लिए अथवा दूसरों को प्रभावित करने के लिए प्राप्त किया हुआ ज्ञान आत्म-कल्याणकर नहीं बन सकता । ___ "भिन्नोद्देशेन विहितं कर्म कर्मक्षयाऽक्षमम् ॥"
- ज्ञानसार उद्देश्य भिन्न होगा तो फल भी भिन्न मिलेगा ।
* 'ज्ञानसार' में ज्ञान के लिए तीन अष्टक हैं । आज कितने ही महात्मा ऐसे हैं जो अध्यनय में अत्यन्त ही आलसी हैं । अन्य समस्त प्रवृत्तिया वें इतने रस से करते हैं कि सब भूल जाते हैं, परन्तु पढ़ते समय ही 'समय नहीं' का बहाना बनाते हैं । "समय नहीं मिलता" यह बहाना भी सचमुच तो ज्ञान की अरुचि बताता है । रूचि हो तो चाहे जैसे करके भी मनुष्य समय निकालता है। क्या आप भोजन के लिए समय नहीं निकालते ?
* आप १० माला गिनें तो 'नमो' कितनी बार आता है ? छः हजार बार आता है। देववन्दन में 'नमुत्थुणं' छ: बार आता है । एक 'नमुत्थुणं' में दो बार 'नमो' आता है । एक 'नमो' (कहे कलापूर्णसूरि - २00mmmmmsssswwwww ५०९)