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बुझ जाता है परन्तु क्या रत्नों की ज्योति बुझती हैं ? क्षायिक समकित मिलने के पश्चात् आत्म-जागृति लुप्त नहीं होती ।।
* केवल मित्रा दृष्टि के लक्षण देखें तो भी चकित हो जायें । वाचनाचार्य के पास से श्रवण, आगम-लेखन आदि प्रथम दृष्टि के लक्षण हैं ।
ऐसे शास्त्र देखने पर मन में होता है कि - अपना इसमें कहां स्थान है ? प्रभु को प्रार्थना करने की इच्छा होती है - प्रभु ! हम आपकी शरण में हैं । हमारे लिए जो योग्य हो उस मार्ग पर हमें आरूढ़ करना ।
भगवान की भक्ति में शक्ति है - मिथ्यात्व के पिशाच को हटाने की । भगवान को साथ रख कर साधना-मार्ग पर आगे बढ़ें।
जब भगवान साथ हैं तो फिर किसका भय ? भगवान के पास मोह रंक है।
.......और भूत पकड़ा गया ! हठीसिंह पटेल प्रातः काल में पश्चिम की ओर जा रहे थे । अपनी लम्बी परछाई को भूत समझ कर उसे पकड़ने के लिए दौड़ने लगे, परन्तु 'भूत' तो आगे ही आगे था । पकड़ा ही न गया । पटेल बड़बड़ा उठा : यह भूत जोरदार है ।
दूर से यह दृश्य देखकर पटेल की मूर्खता पर हँसनेवाले सहजानंद स्वामी (स्वामिनारायण पंथ के प्रवर्तक) ने कहा - 'पटेल ! यह भूत आपके हाथ में इस तरह नहीं आयेगा । आप ऐसा करो, पूर्व दिशा की ओर चलने लगो, फिर देखो कि यह भूत आपका दास बनकर आपके पीछे-पीछे फिरता है कि नहीं ? ऐसा करने पर 'भूत' पीछे-पीछे चलने लगा । पटेल प्रसन्न हो गये ।
सही बात है । जो आदमी तृष्णा को पीठ देकर चलता है, ९. उसके पीछे-पीछे परछाई की तरह लक्ष्मी चली आती है।
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