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तक वह बकरे को कैसे भगा सकता हैं ? सिंह स्वयं बकरी की तरह 'बें... बें...' करता रहता हो तो बकरी कैसे भागेंगी ।
जब तक आत्मा अपना परम आत्मत्व नहीं पहचाने तब तक कर्म नहीं भागते ।
* अभी भगवती में आया कि ऋषभदत्त एवं देवानन्दा को प्रभु ने दीक्षित किये थे । देवानन्दा को चंदनबाला ने दीक्षा दी ।
क्या देवानन्दा को दो बार दीक्षा दी गई थी ? यह प्रश्न उठता है । टीकाकार ने स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि दीक्षा भगवान ने ही दी, परन्तु देवानन्दा को साध्वी प्रमुखा चंदनबाला को सौंपी, क्योंकि कपड़े कैसे पहनने चाहिये ? ओघा किस प्रकार बांधा जाये ? यह सब तो साध्वीजी को ही सिखाना पडता है न ? इसीलिए चंदनबाला ने भी दीक्षा दी - ऐसा लिखा है ।
* देवगिरि में जिनालय का निर्माण कराने के लिए पेथड़ शाह ने तरकीब की । ओंकारपुर में मंत्री हेमड़ के नाम पर तीन वर्षों तक भोजनशाला चलाई थी । हेमड़ को पता लगते ही वह स्तब्ध रह गया - मेरा नाम रोशन करने वाला यह पेथड़ शाह कौन ? कितने सज्जन ?
पेथड़ शाह को मिलकर हेमड़ गद्गद् हो गया और उसके बाद देवगिरि में हेमड़ की सहायता से पेथड़ शाह ने जिनालय का निर्माण कराया ।
इस पर से मुझे यह कहना है कि भोजनशाला पर नाम है हेमड़ का, परन्तु देने वाले थे पेथड़ शाह । यहां भी...
यह जैन प्रवचन रूपी भोजनशाला है । भोजनशाला पर मेरा नाम टंगा हुआ हो, परन्तु देने वाले भगवान हैं ।
देखो, गणि महाराज मुक्तिचंद्रविजयजी यहां समस्त साधुसाध्वीयों को (१९ साधुओ एवं ९५ साध्वीजियों को) योग कराते हैं । वे क्या अपनी ओर से कराते हैं ? नहीं, महापुरुषों की ओर से कराते हैं ।
सात खमासमणों में क्या बोलते हैं ?
'खमासमणाणं हत्थेणं' पूर्व के महान् क्षमाश्रमणों के हाथों से (४३० 0000000000 5000 कहे कलापूर्णसूरि - २