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कर्णाटक के प्रधान सिन्धिया, बेंगलोर, वि.सं. २०५२
२७-६-२०००, मंगलवार आषा. कृष्णा-१० : पालीताणा
परमत्थाउ मुणीणं, अवराहो नेव होइ कायव्वो । छलियस्स पमाएणं, पच्छित्तमवस्स कायव्वं ॥ १५३ ॥
* परम पुन्योदय से जिन-धर्मोपदेश सुनने को मिलता है । साक्षात् तीर्थंकर से नहीं मिलता, परन्तु उनकी परम्परा में आये हुए सद्गुरु से सुनने को मिले, यह भी महापुन्योदय है ।
* दीर्घ संसारी को ही देव-गुरु की आशातना करने का मन होता है । आशातना करने का मन हो वही भावी दीर्घ संसार की सूचना है।
आराधक आत्मा दोष न लगें उसकी चिन्ता करता ही है । सभ्य व्यक्ति कपड़े पर दाग न लगे उसकी चिन्ता करेगा ही ।
* प्रथम गणधर, तीर्थ के आधारभूत श्री गौतम स्वामी जैसे को भी भगवान कहा करते थे - "समयं गोयम मा पमायए ।"
"हे गौतम ! एक समय भी प्रमाद मत करना ।"
प्रमाद ही अपराध कराता है । सद्बुद्धि-जन्य विवेक से ही प्रमाद को रोका जा सकता है।
प्रमाद आचरण करने का मन हो और भीतर से आवाज आती (४२२ 000000000000 sons कहे कलापूर्णसूरि - २)