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________________ न ? कुछ समय पूर्व एक बार पीछे रह गये महात्मा को कोई हिंसक प्राणी खा गया था । द्रव्य मार्ग में पीछे रहनेवाले की भी ऐसी दशा होती हो तो भाव-मार्ग में पीछे रहने वाले की दशा क्या होगी ? यह आप तनिक सोच लें । * भगवान का बहुमान समस्त साधना की नींव है। भगवान के बहुमान से ही अपने भीतर विद्यमान दोष दिखाई देते हैं । उन दोषों की निन्दा एवं गर्दा करने की इच्छा होती है, दूसरे के सुकृतों की अनुमोदना करने की इच्छा होती है। ये तीन पदार्थ आत्मसात् हो गये तो समझना कि मुक्तिमार्ग खुल गया । * व्यापारियों को सन्तोष नहीं है - नित्य नया नया कमाना चाहते हैं । धन का उपयोग करते रहना चाहते हैं । ___ यहां गुण धन है । इसे बढ़ाते रहना है, परन्तु हम तो मान बैठे हैं कि दीक्षा ग्रहण की अतः बात पूर्ण हो गई । सब मिल गया । दीक्षा अर्थात् साधना की पूर्णाहुति नहीं परन्तु साधना का प्रारम्भ है - यह बात भुला दी । गुणों की अभी भी आवश्यकता है, यह बात ही दिमाग में से निकल गई ।। गृहस्थ को धन का लोभ दोष है, परन्तु साधु को यदि गुणों में सन्तोष रहे तो दोष है । धन का लोभ डुबोता है । गुणों का लोभ उद्धार करता है। धन का लोभ बुरा है । गुणों का लोभ उत्तम है । कब किसकी आराधना ? तपोवृद्धि हेतु - वर्धमान स्वामी की, आदीश्वर की । शान्ति हेतु - शान्तिनाथ की । ब्रह्मचर्य हेतु - नेमिनाथ की । विज निवारणार्थ - पार्श्वनाथ की । (३९००nommomooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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