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कषाय नहीं करने पर भी हो जाते हैं ।
'कषायों से लड़ने की शक्ति नहीं है । लड़ते हैं तब कषाय जीत जाते हैं । हम हार जाते हैं । क्या करें ? यदि आप ऐसा कहते हैं तो मैं कहूंगा, 'अपनी शक्तिसे कषाय नहीं जीत जायेंगे । इसके लिए भगवान का शरण स्वीकार करना पड़ेगा ।
प्रभु का शरण स्वीकार करके लड़नेवाला आज तक कदापि हारा नही । हम अपनी शक्ति से लड़ने के लिए जाते हैं । फल स्वरूप हम हार जाते हैं और निराश बन जाते हैं । हमारी शक्ति कितनी ?
अनन्त शक्ति की शरण पकड़े तो कदापि पराजय का मुँह देखना नहीं पड़ेगा ।
यद्यपि, प्रभु की शरण लेने की इच्छा होने के लिए भी चित्त की निर्मलता चाहिये । जब तक कर्म-दल अमुक प्रमाण में निर्बल न हो जायें तब तक प्रभु कदापि याद नहीं आते, उनकी शरण में रहने की इच्छा नहीं होती ।
प्रभु याद आये, प्रभु की शरण लेने की इच्छा हो तो समझ लें चित्त निर्मल हो गया है, कर्मों के प्रगाढ़ बादलों में छेद हो गया है ।
निर्मल चित्त में ही विनय, विद्या, विवेक, वैराग्य, विरति, वीतरागता और विमुक्ति क्रमशः प्राप्त होती हैं ।
* आपके घर पर कोई अतिथि आता है तब आप क्या करते हैं ? यह पालीताना है । यहां अन्य समुदाय के या अन्य गच्छ के साधु-साध्वीजी भी आते हैं । उनका सत्कार करें । आगे बिठायें । आप तो नित्य सुनते ही हैं । कभी दूसरे को अवसर दें । पीछे बैठने से नहीं सुनाई दें तो भी आपने दूसरे को सुनने का अवसर दिया जिससे आपको लाभ ही है । सुन-सुन कर भी अन्त में करना क्या है ? यही तो करना है ।
* रत्न और रत्न की चमक कदापि अलग नहीं हो सकते । रत्न चाहे खान में पड़ा हो, उसकी चमक तनिक भी नहीं दिखाई देती हो, कांच से भी कम चमक हो, फिर भी जौहरी की आंख तो उसमें भी चमक देखती ही है ।
१८ कहे कलापूर्णसूरि
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