________________
तो आपको ही नहीं, दूसरे को भी हानि होगी ही ।
विवेक से वैराग्य उत्पन्न होता है।
स्व-पर की समझ से वैराग्य आता ही है । विवेकी व्यक्ति विषयों को विष से भी भयंकर समझता है। यदि वासना में मन जाता हो और उपासना में नहीं जाता हो तो समझ लेना, उतने अंशों में विवेक नहीं है । __ वैराग्य से विरति प्रकट होती है ।
वैराग्य सच्चा वही कहलाता है जो आपको त्याग के मार्ग पर ले जाये, संसार पर विराम चिन्ह लगवा दे ।
विरति से वीतरागता उत्पन्न होती है । विरति की साधना के द्वारा भीतर वीतरागता उत्पन्न होती ही
वीतरागता से विमुक्ति उत्पन्न होती ही है । ..
एक विनय आपको कहां से कहां ले जाता है ? विनय, विद्या, विवेक, वैराग्य, विरति, वीतरागता एवं विमुक्ति - ये क्रमशः मिलते-जुलते पदार्थ है, परन्तु प्रारम्भ विनय से ही करना पड़ेगा । यदि विनय चूक गये तो अन्य गुण एक की संख्या से रहित शून्य ही सिद्ध होंगे ।
* विदेशों में प्रवास में जाते समय तीन रानियों ने राजा के पास झांझर, कड़ा और हार मंगवायें । चौथी बोली - 'मुझे तो आपकी ही आवश्यकता है, अन्य कुछ नहीं चाहिये ।' तीनों को उतना ही मिला । चौथी को राजा मिला अर्थात् सबकुछ मिल गया ।
आप प्रभु के पास मांगोगे या प्रभु को ही मांगोगे ? बड़ी मांग में छोटी मांगों का समावेश हो जाता है, यह न भूलें । ।
ए
(३६०80moooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)