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________________ THAPA प्रवचन फरमाते हुए पूज्यश्री - ११-६-२०००, रविवार जेठ शुक्ला-१० : पालीताणा (चातुर्मास प्रवेश के मंगल दिन पर व्याख्यान आदि कार्यक्रम) * आज गिरिराज की छत्रछाया में आने का अवसर आया है । गिरिराज की छाया में आने का निरन्तर मन हो, ऐसा यहां का वातावरण है । श्री आदिनाथजी पूर्व निन्नाणवे बार यहां आ चुके हैं । इससे ज्ञात होता है कि इस भूमि की महिमा तीर्थंकरो से अधिक है। * आप अपने नाम से अलग नहीं हैं तो भगवान अपने नाम से अलग कैसे होंगे ? नाम-नामी का कंथचित् अभेद । 'नाम ग्रहंता आवी मिले मन भीतर भगवान ।' नाम लो 'महावीर देव' और वे तुरन्त उपस्थित । * जहां अनन्त सिद्ध मोक्ष में गये, ऐसी इस पावन भूमि पर पहले चातुर्मास किया था । (सं. २०३६ से सं. २०५६) बराबर बीस वर्ष हो गये । __ भगवान की कृपा-दृष्टि से यहां रहने का अवकाश मिला । दादाश्री सीमंधर स्वामी ने स्वयं इसकी प्रशंसा की है । अतः इस तीर्थ की यात्रा किये बिना कोई चले मत जाना । यहां अनन्त कहे कलापूर्णसूरि - २wwwwwwwwwwwwwwwwws ३३१)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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