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सरल बनें । (आर्जव) ४. सन्तोषी बनें । (मुक्ति)
तपस्वी बनें । (तप) ६. संयमी बनें । (संयम) ७. सत्यनिष्ठ बनें । (सत्य) ८. पवित्र बनें । (शौच) ९. फक्कड़ बनें । (अकिंचन) १०. ब्रह्मचारी बनें । (ब्रह्मचर्य) ये ही दस प्रकार के यति धर्म हैं ।
* गृहस्थ जीवन त्याग करके यहां आये । यहां आकर भी वस्तुओं का संग्रह करने लगें तो ?
एक महात्मा के काल धर्म के पश्चात् उनकी पेटियों में से अनेक वस्तु निकली । चालीस तो केवल चश्मों की फ्रेमे निकली ।
ये परिग्रह संज्ञा के तूफान हैं । उपयोगी होंगे या नहीं ? इनका विचार किये बिना एकत्रित करते रहो उसका मतलब क्या ?
* यहां एक ऐसे महात्मा (पं. चन्द्रशेखरविजयजी के शिष्य मुनिश्री धर्मरक्षितविजयजी) बैठे हुए हैं, जिनकी ९९मी ओली पूर्ण हो गई और आज १००वी ओली प्रारम्भ हुई है। सोलह वर्ष के पर्याय में चौदह वर्ष तो आयंबिलों में व्यतीत किये हैं।
पांच-पांच सौ आयंबिल चार बार किये हैं। अभी १००८ आयंबिल चल रहे हैं ।
बीज नहीं बोया तो ? ___ पढ़ो - लिखो, तप करो परन्तु हृदय में यदि अनन्त (प्रभु) के प्रति प्रेम नहीं उत्पन्न हुआ तो सब व्यर्थ है । कोई किसान खेत में मिट्टी खोदे, हल चलाये, भूमि समतल करे, पानी से सिंचाई करे परन्तु यदि बीज नहीं बोये तो ?
(३३० 00000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि -