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________________ । वे कुछ नहीं करे, यही उनकी भारी समाज-सेवा कहलाती है । the the वास्तव में देखा जाये तो सभी संसारी जीवों का अस्तित्व ही अन्य जीवों के लिए दुःखदायी है । संसार में रहना और दूसरों को कष्ट नहीं देना सम्भव ही नहीं है । इसीलिए संसार से छूटकर मोक्ष में जाना है । मोक्ष में गये हुए सिद्ध किसी के लिए दुःखदायी नहीं बनते । यह भी जगत् की महान् सेवा है । हम मोक्ष में जायेंगे तो जगत् की महान सेवा गिनी जायेगी । हमारे निमित्त से जगत् को होने वाला कष्ट तो कम से कम रुकेगा । साधु ने इस मार्ग में कदम बढाये हैं । इसीलिए साधु अभयदान देकर जगत् पर महान उपकार करता है । साधु किसी को भयभीत नहीं करता तो उसे भी कौन भयभीत करता है ? दूसरे को भयभीत करने वाला स्वयं भी भयभीत ही होता है । दूसरे को अभय देने वाला स्वयं भी अभय ही होता है । साधु कैसे होते हैं ? 'सत्तभयट्ठाणविरहिओ ।' साधु सातों भयस्थानों से रहित होते हैं । * क्या आपको गर्मी लगती है ? गर्मी लगती हो तो समझें वाचना में मन नहीं लगा । मन लगा हो उसके लिए गर्मी क्या ? वायु क्या ? मुझे पूछो तो कहूं... गर्मी का विचार नहीं आता । गर्मी का विचार हमारे चित्त की अनएकाग्रता बताता है । * आप देव-गुरु के दास बन गये तो समझ लो मोह कुछ नहीं कर सकता । कर्मों का सरदार मोह है । भगवान एवं गुरु की कृपा से ही मोह को जीता जा सकता है । माषतुष मुनि के पास क्या था ? बुद्धि के नाम पर शून्य था । तत्त्व तो अधिक क्या समझें ? वे दो वाक्य भी कण्ठस्थ नहीं कर सकते थे । उन्हें किस आधार पर केवलज्ञान मिला ? गुरु- कृपा के आधार पर मिला । मोह जाने के बाद ज्ञानावरणीय - दर्शनावरणीय आदि कर्मों को जाना ही पड़ता है । सरदार की मृत्यु होने के बाद सैनिक कब तक लड़ेंगे ? कहे कलापूर्णसूरि २ - - ० ३११
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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