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________________ स्थायी रखा, गुरुदेवों ने उनका उपदेश दिया और हम तदनुसार जीवन यापन न करें, जीवन जीने का प्रयत्न न करें, प्रयत्न करने का कष्ट भी न रखें तो उन महापुरुषों को कितना कष्ट होता होगा ? गोचरी मंगवाने वाला गोचरी का उपयोग न करे तो लाने वाले का उत्साह मन्द हो जाता है। आप हमारी बात नहीं सुने, जीवन में नहीं उतारें तो क्या हमारा उत्साह मन्द नहीं पडेगा ? * 'अहो ! अहो ! साधुजी समताना दरिया !' । साधु को समता सागर कहा है । समुद्र नहीं बनें तो कोई बात नहीं, सरोवर तो बनें, कूए तो बनें, वह भी नहीं बनें तो खाबोचिया तो बनें । समता की बूंद भी न हो ऐसा साधुत्व क्या काम का ? मृग-तृष्णा का जल दूरसे जल की भ्रान्ति कराता है, परन्तु निकट जाकर देखो तो कुछ भी नहीं होता । हमारी समता ऐसी भ्रामक तो नहीं है न ? समता के सागर के नाम पर केवल मृगतृष्णा नहीं है न ? जल - प्यास, दाह, मलिनता दूर करता है । अग्नि - ठण्ड दूर करती है । वायु - प्राण बनता है । धरती - आधार प्रदान करती है । वृक्ष - भोजन, आवास, छाया, फूल आदि देता है। बादल - जल प्रदान करते हैं । चन्द्रमा - शीतलता प्रदान करता है । चन्दन - सुगन्ध प्रदान करता है । साधु क्या देता है ? अभयदान, ज्ञान-दान । अन्न-दान या धन-दान से क्षणिक तृप्ति होती है, परन्तु ज्ञानदान या अभय-दान से यावज्जीवन तृप्ति होती है । समस्त जीवों को अभयदान देने वाला साधु समग्र ब्रह्माण्ड में शान्ति की उद्घोषणा करता है । साधु घोषित करता है कि अब मैं किसी के लिए दुःखदायी नहीं बनूंगा । आपको पता है - कइयों का अस्तित्व ही दुःखदायी होता (३१०nawwar Rana कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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