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________________ क्रिया लीनता २०-५-२०००, शनिवार ज्ये. कृष्णा-२ : हस्तगिरि : प्रात १०.३० (बी. एफ. जसराज लुक्कड़ मन्नारगुड्डी - आयोजित शत्रुजय डेम से पालीताणा छरी पालक संघ, २०० यात्रिक, ज्येष्ठ कृष्णा-१ से ज्येष्ठ कृष्णा-६) * भगवान के स्वरूप, उपकारों आदि का परिचय हमारे समान बाल-जीवों को समझ में आये अतः स्तुतियों, स्तवनों आदि की रचना की गई है । भगवान का उपकार समझ में आने के बाद थोड़ा-बहुत भी अन्य जीवों पर उपकार करते रहने से ही ऋण-मुक्त बना जा सकता अब तक हमारे जीवने अन्य व्यक्तियों के उपकार लेना ही चालु रखा है, ऋण चुकाना तो सीखे ही नहीं हैं । वायु, पानी, वनस्पति, पृथ्वी आदि का प्रति क्षण कितना अधिक उपकार हो रहा है ? इस सम्बन्ध में कभी विचार किया है ? अपकाय के असंख्य जीव बलिदान देते हैं तब हमारी प्यास बुझती है । वायु काय के असंख्य जीव अपने प्राणों की आहुति देते हैं तब ही हम सांस ले सकते हैं । (२८२ 00000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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