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आदि माता हैं। इसीलिए प्रवचन माता, धर्म माता, गुरु माता आदि शब्दों का निर्माण हुआ है ।
भगवान हमें पूर्ण दृष्टि से देखते हैं, परन्तु हम भगवान को किस दृष्टि से देखते हैं ?
चाहे जितने दोषों से युक्त होते हुए भी प्रभु हमें पूर्ण प्रेम के रूप में देखते हैं । क्या यह कम बात हैं ?
प्रभु के जन्म के समय आनन्द क्यों ?
* प्रभु वीर के जन्म के समय आनन्द का कारण बताते हुए सब ने कहा -
ऋजुवालुका नदी - मेरे किनारे पर केवलज्ञान होगा । कमल - मुझ पर भगवान के चरण पड़ेंगे । मेरु पर्वत - मुझ पर प्रभु के चरणों का स्पर्श होगा । वृक्षगण - हमें नमस्कार करने का लाभ मिलेगा । वायु - हम अनुकूल बनेंगे । पक्षी - हम प्रभु की प्रदक्षिणा करेंगे ।
सूर्य-चन्द्रमा - हम मूल विमान में भगवान के दर्शन करने के लिए आयेंगे ।
___ सौधर्मेन्द्र - मैं पांच रूप करके तथा वृषभ (बैल) बनकर प्रभु का अभिषेक करुंगा ।
चमरेन्द्र - मैं मच्छर बन कर भगवान के चरणों का शरण स्वीकार करूंगा ।
पृथ्वी - हमारे भीतर वर्षों से गड़े हुए निधानों का दान के लिए सदुपयोग होगा।
मानव - धर्मतीर्थ की स्थापना होगी । पशु-पक्षी - हम भी धर्म-देशना सुन सकेंगे, समझ सकेंगे ।
[१०0000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि- २)