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________________ हैं ? चंडकौशिक को पुनः दुर्भाव न आये, अतः भगवान महावीर उसी जंगल में १५ दिन तक रहे । कितनी करुणा ? * शक्कर के ढेर में कोई भी दाना बिना मिठास वाला नहीं है, उस प्रकार जिनागम की कोई भी पंक्ति आत्महित-रहित नहीं है। नमक के ढेर में से कोई भी दाना (कण) चखो तो वह खारा ही होगा, नीम का कोई भी पत्ता कड़वा ही होगा । कितने ही नीम के समान कड़वे होते हैं । कितने ही नमक के समान खारे होते हैं । कितने ही शक्कर के समान मधुर होते हैं । हम कैसे हैं ? संसार के विषय नीम के समान कड़वे हैं । ऊंट को कड़वा नीम भी मधुर लगता है, उस प्रकार भवाभिनंदी को कड़वे विषय भी मधुर लगते हैं । कषाय नमक के समान खारे हैं । संसार-रागी को वे भी मधुर लगते हैं। जिन-वचन शक्कर के समान मधुर हैं । विषय-कषाय हमें खारा, कड़वा और कठोर बनाते हैं, जिन-वचन हमें मधुर बनाते हैं। * समस्त द्रव्यो से जीव भिन्न है, क्योंकि उसके लक्षण भिन्न हैं । परन्तु हम ज्ञानादि लक्षण भूल गये, इसीलिए दुःखी हो गये । शरीर को ही 'मैं' मान बैठे । उसके सुख में सुखी और उसके दुःख में दुःखी हो गये । फलतः जड़ तो नहीं बने परन्तु जड़ जैसे अवश्य बन गये । सवासौ गाथाओं का स्तवन पढ़ें। प्रभु की प्रार्थना के माध्यम से कैसे पदार्थ जमाये हैं ? __"जिहां लगे आतम द्रव्य-, लक्षण नवि जाण्यु; तिहां लगे गुणठाणुं भलु, किम आवे ताण्युं ?" अन्यत्र देखो - ___ 'हुँ एहनो ए माहरो, ए हुं एवी बुद्धि चेतन जड़ता अनुभवे, न विमासे शुद्धि ।' आत्मा की अपेक्षा अधिक प्रधानता शरीर को दे दी । सच कहें - चौबीस घंटो में आत्मा कब याद आती है ? [२६६ 06wwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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