SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपकी (साधु की) आराधना से जीव तीर्थंकर बनते हैं और आप रह जाओ? जहां गुण दिखाई दे वहां नमस्कार करो । गुणों को नमस्कार उनकी लगन को कहते हैं । जिसे आप नमस्कार करते हैं वह आपको प्रिय लगता है, यह निश्चित है। दोष बिना बुलाये आते हैं । गुण उत्तम हैं । अतः उन्हें निमंत्रण देकर बुलाने पड़ते हैं । * जितनी गुणों की पुष्टि उतनी अपनी आत्मा पुष्ट । गुणों के बजाय दोषों की वृद्धि की तो आत्मा भी दोषयुक्त बन जायेगी। * अपने नाम की तरह मैंने 'योगसार' को पक्का किया है । मृत्यु के समय यही साथ आयेगा । आप सब समीप ही होंगे तो भी साथ नहीं आओगे । भावित बना हुआ ज्ञान ही साथ आयेगा । बुने हुए गुण ही साथ आयेंगे । __ हम सब किसके भरोसे हैं ? आग लगेगी तब क्या कुंआ खोदेंगे ? जिसने ज्ञान का अध्ययन नहीं किया शरीर को कसा नहीं, उसे समाधि मिलना कठिन है । जन्म से अनन्तगुनी वेदना मृत्यु के समय होती है । ऐसी वेदना में भी आत्मा को भावित बनाई हुई हो तो समाधि ठहरती है। शरीर के साथ अभेद सम्बन्ध बांधने के कारण वेदना होती है । छ: महिनों के पश्चात् लोच कराते हैं । क्यों ? इसलिए कि वेदना के समय समाधि रहे । मुनि प्रतिकूलता सहकर अशाता का क्षय करता है। हम सहन न करके सुख-शील बन कर शाता वेदनीय का क्षय करते हैं । * हाथी के भव में मेघकुमार ने शशक (खरगोश) को बचाया तो वह कहां पहुंचा ? अपने लिए मैदान साफ किया परन्तु आग लगने पर निर्भय स्थान की सब पशु-पक्षी खोज करते हैं । हाथी ने सबको स्थान दिया । हम हों तो ? क्या स्थान देंगे ? हाथी ने किस को स्थान नहीं दिया ? खाज करके पांव नीचे रखने से पूर्व हाथीने नीचे देखा । आप पहले पांव रखते हैं कि नजर रखते हैं ? इर्यासमिति का हाथी भी पालन करता है और आप नहीं ? और देखा तो नीचे [२५६ 60woooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - २)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy