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वि.सं. २०५४
६-५-२०००, शनिवार वैशाख शुक्ला-३ : पालीताणा
* 'चंदाविज्झय' में साधु-जीवन की कला बताई गई है ।
चारित्र पूर्णतः विशुद्ध हो तो इसी जन्म में मोक्ष मिलता है। चारित्र की शुद्धता जितनी दूर होगी, उतना ही मोक्ष भी दूर होगा ।
ज्ञान-दर्शन से युक्त चारित्र ही सच्चा चारित्र कहलाता है, यह बात मैं अनेक बार समझा चुका हूं। जब-जब 'चारित्र' शब्द का प्रयोग आये तब ऐसा अर्थ समझें । _ 'सीरे' (हलवे) के प्रत्येक अंश में शक्कर, घी और आटा व्याप्त है। तीनों वस्तु एक होने पर ही 'सीरा' बनता है । उस प्रकार ज्ञान-दर्शन चारित्र तीनों एक रूप बनने पर ही मोक्ष मार्ग बनता
दर्शन-ज्ञान रहित चारित्र का हमने अनेक बार पालन किया । इस भव में भी ऐसा चारित्र नहीं है न ? ऐसी शंका भी हम रखें तो आत्म-निरीक्षण करने की इच्छा होती है । आत्म-निरीक्षण बढ़े तो कभी सच्चे गुण आ सकते हैं ।
कमी ही यदि समझ में न आये तो उसे दूर करने की इच्छा कैसे हो ?
कहे
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