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________________ भक्ति, ध्यान, ज्ञान आदि जितने प्रबल होते हैं उतने भगवान समीप प्रतीत होते हैं । हृदय सरल एवं स्वच्छ बनते ही भगवान का वहां प्रतिबिम्ब पड़ने लगता है, परन्तु प्रभु के लिए समय किसको है ? भक्तों के लिए समय निकालने वाले भगवान को ही हम भूल गये हैं । भगवान किसके लिए है ? वृद्धों के लिए ? सत्य है न ? हम भगवान को याद करते रहते हैं क्योंकि ७६ वर्ष की उम्र हो गई है । आज सतहत्तरवां शुरु हो गया । मुझे तो अब भगवान को प्राप्त करना है, यह मानकर भक्ति करता रहता हूं । आपको तो शान्ति है | अधिक जीना है न ? परन्तु समझ लो, आयुष्य का कोई भरोसा नहीं है । किसी भी आयु में यम आक्रमण कर सकता है । अतः एक क्षण भी प्रभु को भूलने जैसा नहीं है । * मनोगुप्ति के तीन सोपान विमुक्त कल्पना - जालम् सामसामायिक | कल्पना के जाल में से मन को मुक्त करना मैत्री की मधुरता । २. समत्वे सुप्रतिष्ठितम् सम सामायिक | मन को समता में प्रतिष्ठित करना । तुला परिणाम । आत्मारामं मनस्तज्ज्ञैः सम्म सामायिक । मनको आत्मा में लीन करना । तन्मय परिणाम | मनोगुप्तिरुदाहृता ॥ ऐसा मन ही आत्मा के साथ मिल सकता है, परमात्मा के साथ मिल सकता है । तीन सोपान पार करने के बाद ही निर्विकल्प दशा में प्रभु मिलते हैं । * सिद्धयोगी के लक्षण शरीर फूल के समान हलका लगता है, पूर्णतः शिथिल बन जाता है, बिना मालिश किये स्निग्ध (चिकना ) लगता है, आंखो में से अश्रुधारा बहती है । * प्रभु की चेतना के साथ हमारी चेतना रंग जाती है, कहे कलापूर्णसूरि २wwwwwwwwww 6.०० २४७ ३. - -
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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