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________________ Paani ias बेड़ा में पू.पं.श्री भद्रंकरवि. के साथ, वि.सं. २०३१ ६-२-२०००, रविवार माघ शुक्ला-१ : वांकी प्रवेश * भगवान महावीर की छत्र-छाया में हम सभी एकत्रित हुए हैं ताकि हम उनकी कृपा प्राप्त कर सके । उनकी ही कृपा से इतनी धर्म-सामग्री (मनुष्य जन्म आदि) प्राप्त हुई है । * सम्यग्दर्शन से प्रेम और सम्यक् चारित्र से स्थिरता उत्पन्न होती है । समस्त जीवों के प्रति मैत्री, गुणवानों के प्रति प्रमोद, दुःखी प्राणियों के प्रति करुणा और निर्गुणी के प्रति उपेक्षा रुप प्रेम सर्वत्र प्रवाहित होना चाहिये । ऐसे गुण चरमावर्त काल में प्रविष्ट हुए बिना प्राप्त नहीं हो सकते । मैत्री, प्रेम, दया आदि गुण हमसे परोपकार कराये बिना नहीं रहते । प्रकट होता है यह प्रेम जीव में, परन्तु प्रकट कराते हैं भगवान, क्यों कि भगवान प्रेम के भण्डार हैं । भगवान सिद्ध योगी हैं। इसी लिए अष्ट-प्रातिहार्य आदि ऋद्धि उन्हें प्राप्त है। ६00 कहे कलापूर्णसूरि - २
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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