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* हमने चारित्र तो अंगीकार कर लिया है, परन्तु उसमें आनन्द क्यों नहीं आता ? हम प्रभु-भक्ति-रूप उसका उचित उपाय जानते नहीं हैं, अतः आनन्द नहीं आता । जितनी प्रभु की भक्ति बढ़ती है उतनी श्रद्धा बढ़ती है, आत्मानुभूति का द्वार खुलता है।
भगवान की भक्ति करने से समता आती है । समता का दूसरा नाम सामायिक है और योग में समता का नाम समापत्ति है । समापत्ति अर्थात् भगवान के साथ सम्पूर्ण एकता ।
कहां हमने भूल की ? आए हुए चारित्र में आनन्द तो नहीं आता, परन्तु आनन्द नहीं आने का दुःख भी नहीं है ।
घडियाल खो गई हो तो तुरन्त चिन्ता होती है। उसके उपाय करते हैं, परन्तु समता खो गई हो तो उसकी चिन्ता होती है क्या ? समता-समाधि को रोकनेवाले विषय-कषाय हैं । अनुकूल विषय मिलने पर राग होता है । प्रतिकूल विषय आयें तो द्वेष होता है। दाल तो लाये, परन्तु पानी-छिलके अलग हैं । बनाने वाले के प्रति द्वेष होता है । अच्छी दाल हो तो राग होता है । ऐसे राग-द्वेष नहीं आयें वह समता कहलाती है । इन्द्रियों पर विजय की हो तो कषाय नहीं आते । मन को चंचल करने वाले ये विषय-कषाय ही हैं ।
अच्छी तरह समितियों का पालन करने से पांच इन्द्रियों पर विजय मिलती है और गुप्तियों का पालन करने से मन पर विजय प्राप्त होती है ।
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पांच नमस्कार १. प्रहास नमस्कार - मजाक से अथवा ईर्ष्या से नमस्कार करना । २. विनय नमस्कार - माता-पिता आदि को विनय से नमन करना। ३. प्रेम नमस्कार - मित्रों आदि को प्रेम से नमन करना ।
४. प्रभु नमस्कार - सत्ता आदि के कारण राजा को नमन करना । Tem५. भाव नमस्कार - मोक्ष के लिए देव-गुरु आदि को नमन करना। ,
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(कहे कलापूर्णसूरि - २00000000000000000000 २३५)