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* आप जिस वस्तु का अनादर करेंगे, वह वस्तु आपको दूसरी बार नहीं मिलेगी । यदि तप-गुण का अनादर किया तो तप नहीं कर पाओगे । यदि ज्ञान का अनादर करेंगे तो ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकोगे । इस प्रकार सभी गुणों के सम्बन्ध में समझ लें।
गुण प्राप्ति के बाद भी नम्र बनना है । यदि नम्र नहीं बनोगे तो वे गुण भी दूसरी बार नहीं मिलेंगे ।
* अहंकार अत्यन्त ही खतरनाक है । अहंकार स्व-उत्कर्ष एवं पर-अपकर्ष दो बातें सिखाता है ।
हम इतने तुच्छ हैं कि एक थोय, स्तवन या सज्झाय सुन्दर ढंग से बोलें तो भी हम फूल जाते हैं ।
पर-अपकर्ष से निन्दा का जन्म होता है । स्व-उत्कर्ष से डंफास का जन्म होता है । हम किससे उच्च है ? कौन हमसे नीचा है ? समस्त जीव समान है, सिद्धों के स्वधर्मी हैं ।
___ क्या ज्ञानसार का प्रथम श्लोक कण्ठस्थ है ? "ऐन्द्रश्री सुखमग्नेन..."
पूर्ण आत्मा भी यदि सबको पूर्ण रूपेण देख रही हों तो किसी को अपूर्ण देखने का हमारा क्या अधिकार ?
एक ही बात को आगे रख कर जिस जीव की आप निन्दा करते हैं, उससे सबसे बड़ी हानि क्या ? उसके अन्य समस्त गुणों को आप ढक देते हैं । फलतः वे गुण आप में आ नहीं सकते ।
इसीलिए ज्ञानी कहते हैं कि दूसरों के गुण देखकर आप प्रसन्न रहें और अपना साधारण दोष देख कर भी स्वयं को हीन माने ।
गुणवान आत्माओं का अनादर करने से ही हम भूतकाल में बोधि-दुर्लभ बने हैं । अब और कब तक बोधिदुर्लभ बनना है।
देवों का भी अनादर नहीं करना है । किसी भी जीव का अनादर नहीं करना है । पगाम सज्झाय में क्या बोलते हैं ?
"देवाणं आसायणाए - देवीणं आसायणाए..." आगे बढ़ कर
"सव्वपाणभूअजीव सत्ताणं आसायणाए ।" समस्त जीवों का अनादर टालना है ।
प्रश्न - विराधना - आशातना में क्या अन्तर हैं ? (१९८wwwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - २)