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THESERahasya
वढवाण, वि.सं. २०४७
२०-१-२०००, गुरुवार पोष शुक्ला-१४ : अंजार
प्रबोधाय विवेकाय, हिताय प्रशमाय च ।
सम्यक् तत्त्वोपदेशाय, सतां सूक्तिः प्रवर्तते ॥ * भगवान महावीर की प्रथम देशना निष्फल होने का कारण क्या है ?
कोई भी कार्य समस्त कारणों की उपस्थिति से ही सिद्ध होता है। कोई भी कार्य सिद्ध न हो तब निराश नहीं होकर सोचना चाहिये कि अवश्य ही किसी कारण की कमी है, त्रुटि है । _ 'काल विषम है' यह कहकर हट मत जाना । काल को विषम बनाने वाले हम ही हैं । हमारा ही वक्र एवं जड स्वभाव
हेमचन्द्रसूरि जैसे तो इस कलिकाल को भी धन्यवाद देते हैं कि कलिकाल अल्प समय में भी साधना को सफल कर देता है । सतयुग में तो साधना में करोड़ों साल लग जाते थे । आखिर दृष्टिकोण की बात है। आप शुभ दृष्टिकोण रखकर चाहे जितने बुरे पदार्थ में से भी शुभ खोज सकते हैं, जैसे कृष्ण ने मरी हुई कुत्ती में से श्वेत दांत खोज निकाले थे । कलिकाल भी मृत, काली (कहे कलापूर्णसूरि - २000000 somooooooo6)