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________________ में कर्म की शक्ति है कि आत्मा की शक्ति ? जीव में क्षीर-नीर के रूप में पदार्थ के साथ एकात्म होने की शक्ति है। हंस की चोंच दूध-पानी को अलग-अलग कर सकती है। नवपद का ध्यान कर्म और जीव को अलग कर सकता है । यदि कर्म के साथ एकात्म होने की शक्ति हे तो प्रभु के साथ एकात्म होने की शक्ति न हो वैसा कैसे बन सकता कर्म के साथ एकमेक होने की शक्ति सहजमल है। प्रभु के साथ मिलने की शक्ति ध्यान है । अनेक पदार्थों के साथ (देह आदि) हम मिले हैं, परन्तु प्रभु के साथ कभी भी एकात्म नहीं हुए । प्रभु के साथ एकात्म होने की शक्ति तथाभव्यता की परिपक्वता से मिलती है । तथाभव्यता की परिपक्वता कर्म के साथ एकात्म होने की शक्ति क्षीण करती है और प्रभु के साथ जोड़ती है । तथाभव्यता की परिपक्वता के अनुसार हम प्रभु के साथ मिल सकते हैं । जब तक पानी दूध के साथ रहता है, तब तक वह दूध ही कहलाता है । अपेक्षा से जब तक जीव प्रभु के साथ रहता है, तब तक वह प्रभु ही कहलाता है । उपाध्याय पद * उपाध्याय सूत्रों से पढ़ाते है, आचार्य अर्थ से पढ़ाते है। उपाध्याय चाहे आचार्य नहीं है, परन्तु आचार्य को तथा गण को निरन्तर सहायक बनते रहते है। इन्हें राजा का मन्त्री समझ लें । उपाध्याय आचार्य के पास बालक के समान विनीत बनकर ग्रहण करते हैं और साधुओं को प्रदान करते हैं । ५ x ५ = २५ २५ x २५ = ६२५ उपाध्याय इतने गुणों के धारक हैं । कुवादी रूपी हाथी को हटने के लिए उपाध्याय सिंह के समान हैं । गच्छ को चलाने के लिए उपाध्याय स्तम्भ-भूत हैं । (कहे कलापूर्णसूरि-२Boowwwwwwwwwwwwwww १४७)
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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