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भक्ति में लीनता
१६-४-२०००, रविवार चैत्र शुक्ला-१३ : पालीताणा
* जब भी मोक्ष होगा तब पंच परमेष्ठी की उपासना के द्वारा ज्ञान आदि की पूर्णता से ही होगा । हम मोक्षाभिलाषी बने हों, मुक्त होने के अभिलाषी मुमुक्षु हों (मुक्त होने का अभिलाषी ही मुमुक्षु कहलाता है) तो पंच परमेष्ठी की उपासना एवं रत्नत्रयी की साधना में लग ही जाना चाहिये ।
__ जिस कारण से कर्म-बन्धन हुआ है, उससे विपरीत कारणों के सेवन से मोक्ष-मार्ग की ओर आगे बढ़ा जाता है । मिथ्यात्व आदि कर्म-बन्धन के कारण हैं, तो सम्यक्त्व, विरति (चारित्र) आदि कर्म-निर्जरा एवं संवर के कारण हैं ।
* पंचाचार मुक्ति का मार्ग है। यह मार्ग बतानेवाले आचार्य है। आचार्य को नमन करने से आचार पालन करने की और पालन कराने की शक्ति प्रगट होती है।
ऐसे आचार्यों के दर्शन मात्र से, नाम-श्रवण मात्र से लोग अनेक जन्मों के पापों का क्षय करते हैं ।।
* आचार्य पर श्रीसंघ का इतना बोझ हो तो समय कैसे मिले ? समय नष्ट करनेवाले समाचार पत्रों, विकथाओं आदि से
[१३८ Woooooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि-२]